Wednesday, December 29, 2021

पिछला साल

28 Dec 2021
पिछला साल
कुछ लोग zoom पर मिले,
Google Meet पर बिछड़ गए!

पिछला साल
टीचर 'गेट आउट फ्रॉम द क्लास' 
बोलने को तरस गई,
हम कैमरा ऑफ करके निकल लिए।

पिछला साल
महीने के सामान की लिस्ट में दर्जनभर मास्क और 2 लीटर sanetizer परमानेंटली जुड़ गया,
मेहमानों के लिए नमकीन, भुजिया, रसना हट गया!

Wednesday, November 17, 2021

Dream School

Sirf ek waqt ka khana milta tha,
fir bhi main school jata tha...

I could eat just once a day,
Still... I was going to school

ghar ki chhat tapakti thi,
fir bhi main school jati thi

The roof of my house would leak,
Still...I was going to school

khet me mazduri karti thi,
fir bhi main school jati thi...

I would work on the field,
Still...I was going to school.

Maa ghar-ghar jakar bartan manjti
Main bhi jhadoo lagati thi,

Mother would wash other's dishes,
I would sweep their house,

Malkin ki daant khaati thi,
fir bhi main school jati thi....

Madam would scold me for being late,
Still... I was going to school

Socha tha paath saare padhkar
main bhi collector ban jaungi
mere jaisi har bachchi ke haatho me fir jhadu nahi, kalam dungi

Thought I would read all the lessons,
And become a collector one day

Par ab...
kaise...
kaise...
Kaise??? (edited) 

Manabi  [12:45 PM]
Sirf ek waqt ka khana milta tha,
fir bhi main school jata tha...

ghar ki chhat tapakti thi,
fir bhi main school jati thi

meelo paidal chalta tha..
fir bhi main school jata tha..

khet me mazduri karti thi,
fir bhi main school jati thi...

Baba bojh dhota tha,
Main unko sahara deta tha..

sookhi roti khakar, jaise taise guzara hota tha,
fir bhi main school jata tha!

Maa ghar-ghar jakar bartan manjti
Main bhi jhadoo lagati thi,

Malkin ki daant khaati thi,
fir bhi main school jati thi....

Sochta tha padh likhkar bhaag apne badlunga,
Malik ke bachcho jaise, main bhi bachpan ko jee lunga

Socha tha paath saare padhkar
main bhi collector ban jaungi
mere jaisi har bachchi ke haatho me fir jhadu nahi, kalam dungi

Par kaise...
Par kaise...
Par Kaise???

Thursday, October 28, 2021

Men's Day

फैमिली बिजनेस चलाने का प्रेशर
मां बाउजी के सपनों का बोझ
बहन की रक्षा का ज़िम्मा
बीवी की ख्वाहिशों का भार
बच्चों की परवरिश का खर्चा
रिश्तेदारियां निभाने का दबाव
खाना पकाओ तो नामर्द
न पकाओ तो कमज़र्फ।
कमाके घर आओ तो क्या तीर मारा?
न कमाओ तो नाकारा!
मां का लाडला,
बीवी का गुलाम,
बॉस का चमचा,
ऐसे कई नाम...
मूछें ताने तो मेल शोवनिस्ट
शेव कर ले तो चिकना माल
मर्द होना है इस देश में शान
पर जितना लगता, उतना नहीं आसान
नारी के सम्मान के लिए लड़ने को तैयार
क्या उसे नहीं मिलना चाहिए समानाधिकार?
कमाता है तो कमाने दो,
नहीं तो खाना पकाने दो।
मां की सुनना चाहे या पत्नी की
उसको अपनी लाइफ जीने दो।
हंसना चाहे हंसने दो,
रोने वाली बात पर भी तो रोने दो।
बहनों अपनी रक्षा करना सीखों
भाई को टेंशन फ्री रहने दो।
बीवी की शॉपिंग,
बच्चों की पढ़ाई,
क्यों हो ये उस अकेले की लड़ाई?
क्यों न ऐसा समाज गढ़े, जहां नारी पुरुष समान हो,
जितनी शिद्दत से मनती है विमेंस डे,
मेंस डे का भी उतना ही मान हो!

Friday, October 22, 2021

#NoBindiNoBusiness

दिखावे पहनावे को लेकर जंग कैसी,
तहज़ीब तरकीब का भी क्या कोई मज़हब है?
मैं साड़ी पहनूं या स्कर्ट
धोती पहनूं या शेरवानी
टाई लगाऊं या सर पर रख दूं गांधी टोपी
भीतर से जो हूं, क्या वो बदल जाएगा?
बिंदी लगाने से क्या मेरा धर्म बच जाएगा?

Tuesday, August 31, 2021

सुना है प्लूटो वापस आ गया है,!

सुना है प्लूटो वापस आ गया।
पिछ्ले कुछ सालों से खोया हुआ था कहीं।
इतने सारे भाई बहनों में सबसे छोटा...
पर न सूरज ने सुध ली उसकी, न चाँद ने उसे कभी मिस किया।
न जगह जगह इश्तहार छपे, न थाने में रपट लिखाई।
बस यूँही अकेला भटकता रहा होगा, भूखा-प्यासा, बेघर..

अच्छा! कुछ कमाता, धमाता भी तो नहीं था, न लाइफ थी उस पर,
फिर धरती वालों को भी क्यूँ होती उसकी फ़िकर?

पर अब वापस आ ही गया है, तो रख लो...
मंगल और चाँद की तरह इम्पोर्टंस कहां मांग रहा है कोई,
पड़ा रहेगा किसी कोने में, बस एक बेपरवाह प्लानेट बनके।
फिर कभी मूड हुआ तो बेदखल कर देना
और मन चाहा तो ले आना वापस...

सुना है प्लूटो वापस आ गया ....

-  मानबी

Sunday, July 11, 2021

मरने का डर

हम मरने से शायद इसलिए डरते हैं,
क्योंकि हम जीते-जी जीते ही नहीं...

- मानबी
#randomthoughts 

(Reading Manav Kaul these days :) )

Wednesday, April 21, 2021

लोग मर रहे हैं!

21 April 2021

लोग मर रहे हैं,
किसी के पिता,
किसी का पुत्र,
किसी की सखी,
किसी का मित्र!
लोग मर रहे हैं।

पर शोक मनाने का समय नहीं है,
मौन रहने का समय नहीं है।

खबर लिखनी है,
खबर छापनी है।

मात्रा, वर्तनी, भाव में कहीं
गलती न हो जाए।
तो क्या, कि लोग मर रहे हैं।
किसी के पिता,
किसी का पुत्र,
किसी की सखी,
किसी का मित्र!

वो छुट्टी पर जा रहा है,
जिसके लोग मर रहे हैं।
उसे पांच दिन के शोक की है छूट,
जिसके लोग मर रहे हैं।
मुझे उसका भी काम करना है,
जिसके लोग मर रहे हैं।
किसी के पिता,
किसी का पुत्र,
किसी की सखी,
किसी का मित्र,
लोग मर रहे हैं।

Saturday, April 17, 2021

रात

मुझे रात अच्छी लगती है।
क्योंकि रात को तुम सिर्फ मेरे प्रेमी होते हो।
सुबह होते ही, तुम किसी के बेटे, किसी के भाई,
किसी के मामा, किसी के मुलाजिम, किसी के कर्जदार,
और मेरे...
मेरे गुनहगार बन जाते हो!

Thursday, April 15, 2021

बंधन

अस्पताल में beds नहीं हैं। लोग पहले से दोगुनी तेज़ी से मर रहे हैं। पहले वेव में बच्चे सुरक्षित थे। अब बच्चों को भी नहीं बक्शा जा रहा। मानो कोई धाक लगाकर बैठा हो। पहले वार में जब लोगों ने हिम्मत नहीं हारी, तो एक नई stretagy बनाई गई। बच्चे! इंसान के लिए अपने बच्चे से बढ़कर कुछ नहीं। तो बच्चों पर हमला करते हैं। इस बार लगता है इंसान टूट ही जायेगा। एक बार फिर नीचे जाना मना है। पार्क खाली है। वही खौफनाक शांति!
इस एक साल में घर में कैद रहकर हर किसी ने openly कहा कि बस! अब नहीं होता। कुछ तो, 'जो होगा देखी जाएगी' कहकर निकल भी पड़े। घूम फिरकर आ भी गए और जो घर में डरकर बैठे थे, वे और कमज़ोर हो गए। शरीर से नहीं, मन से!
यहीं से लगा कि बंधकर रहना किसे अच्छा लगता है। पर बंधन से निकलने के लिए risk तो लेना पड़ता है बॉस! क्योंकि रिस्क है तो... जी हां .. सही समझे आप बॉस... Risk लेंगे तभी तो जिंदगी से इस्क कर पाएंगे।
तो अगर थक गए हैं बॉस की चाटू नौकरी करते करते तो उसे टाटा bye bye कहने का रिस्क लेकर तो देखिए। बोर हो गए हैं रोज़ वही खाना खाकर तो घर पर समोसे बनाकर तो देखिए। और पक गए हैं सास की फरमाइश पूरी करते करते तो एक बार ना कहकर तो देखिए। हटा दीजिए भविष्य के झोल मोल सपने दिखाने वाली अंगूठियों को। सोम मंगल बुध शुक्र जिस दिन मन करे, खा लीजिए नॉनवेज। जो आपके मन का खाने या जीने से नाराज हो जाए, वो न तो बड़ा हो सकता है न भगवान। सो एक बार अपने इस भगवान को अकेला छोड़कर तो देखिए।

Wednesday, April 14, 2021

Iti Jibon!

Ekti pagol bon,
Oshukhe otishtho Maa,
Bhaanga ghor,
Niraamish ranna,
Faanka aakaash,
Cheda sweater,
Mathaye kapod,
Eka, here jawa Mon,
Iti jibon!

Sunday, April 11, 2021

सुकून

12 अप्रैल 2021
इस सुकून में जीता है मेरा कातिल,
कि उम्र भर किसी का दिल तक नहीं दुखाया उसने!

जाते जाते

महामारी से मरना चाहते हो?
यह छूने से फैलने वाली बीमारी है,
जाते जाते कोई साथ न होगा!
जीवन ने उसे आगाह किया।

जीते जीते कौन था?
उसने जीवन से पूछा।

शोक

मृत्यु के 13 दिन बाद शोक खोलने की रस्म होती है। बहुएं चूड़ियां पहन सकती हैं। बिंदी लगा सकती हैं। गहरे रंग पहन सकते हैं। खाने में प्याज लसन लगा सकते हैं। कपड़े धुल सकते हैं। शोक खुलने तक ये सब वर्जित है। शोक खुल जाने पर नहीं। 
क्या 13 दिन में शोक खुल जाता है? या क्या 13 दिन तक शोक रहता है? कौन तय करता है शोक की समय सीमा? नियम? या मन?

घुटन

वह स्थिति, जब मन गले तक भरा हो पर आंखें रुदन से इनकार कर दें, क्योंकि मस्तिष्क ये मान चला है कि आप कठोर हैं।

Thursday, April 1, 2021

My Home

I wanted to go home
And realised...
There was no home..

No one made a home,
I could call mine.

And I would never be able to make one for me.

All I had was a rented house,
From where I could be kicked out any day..any time. 

I wish I could make a house for my daughter.



Wednesday, March 31, 2021

छोटा आदमी

मैं छोटा आदमी हूं।
छोटी ख्वाहिशें रखता हूं।
छोटी सांसे लेता हूं।
जीवनभर छोटा ही रहूंगा।
और एक दिन छोटा ही मर जाऊंगा।

Monday, March 22, 2021

Building

I wish, this building was so high,
That I could jump and just die!

Saturday, March 20, 2021

मरने के बाद

पियूष मिश्रा का इंटरव्यू लेते हुए मैंने उनसे पूछा था, "आपके लिए सबसे बड़ा प्रश्न क्या है?"
उन्होंने उत्तर दिया था, "यही कि आदमी मरने के बाद कहां जाता है?"
मैंने उनसे पूछा था कि पता चल भी जायेगा तो क्या?
तब मुझे समझ में नहीं आता था कि यह इतना important question क्यों है।
शायद यह प्रश्न इतना जरूरी तब तक नहीं लगता, जब तक आप यहां से चले जाना नहीं चाहते। जब आप यहां से ऊब जाते हैं और दूसरी दुनिया में चले जाना चाहते हैं, तब आपको यह प्रश्न सताने लगता है। मरने से पहले मरने का डर नहीं लगता क्योंकि आप जीने से ज्यादा डर चुके होते हैं। पर अब इस बात का डर होता है कि अगर नहीं मर पाए तो बिखरे हुए टुकड़ों के साथ जीना कैसे जाती रखेंगे। और डर होता है कि मरकर भी दूसरी तरफ यही दुनिया मिली तो? यही रिश्ते, यही भूख, यही दौड़, यही ढकोसला मिला तो?

पिंजरा

हम अपने बेटों को 'पिंजरा' बना देते हैं। एक खाली पिंजरा, जो अपने आप कुछ नहीं कर सकता। जो अपने लिए कुछ.. कुछ भी नहीं कर सकता, वह अपने आप हंस बोल कैसे सकता है?
और फिर हमें उसका कुछ न होना अखरता है। पर क्योंकि अपने आप कुछ भी करना सिखाने के लिए अब बहुत देर हो चुकी है, हम इस विरान, नाकारे पिंजरे के लिए एक चिड़िया ढूंढने लगते हैं। चिड़िया मिलती है, किसी पेड़ की शाख पर बैठी चहकती हुई, अपना खाना खुद लाती हुई, हवाओं में स्वच्छंद उड़ती हुई, हंसती हुई, मुस्कुराती हुई, एक आज़द जीवन जीती हुई।
पर हम उसे ताने मारने लगते है। कैसी कुलटा है, अपना सारा काम खुद करती है, भला पिंजरे के बगैर भी कोई चिड़िया रहती है? नाक ही कटा देगी ये तो अपनी बिरादरी की!
चिड़िया को लगता है शायद ताने मारनेवाला बिलकुल ठीक कह रहा है। आखिर कोई कब तक अकेला फिरेगा? आखिर कब तक कोई सारे काम अकेला करता रहेगा। आखिर एक से भले दो। पिंजरा और मैं साथ साथ उड़ेंगे। साथ खाना लायेंगे। साथ आजाद रहेंगे!
अपने साथी को अपने जैसा ही समझकर, आंखों में घरों सपने लिए वह पिंजरे में जा बैठती है। पिंजरे का दरवाजा बंद। पिंजरा कुछ नहीं बोलता। चिड़िया चहकती है, पिंजरा चहकना नहीं जानता, सो पिंजरे का चहकना उसे बचकाना लगता है।
चिड़िया उड़ना चाहती है। पिंजरा उड़ना नहीं जानता। अपनी मजबूरी का वास्ता देकर वह चिड़िया को फिर कभी उड़ने नहीं देता।
पिंजरे का मालिक जो देता है, चिड़िया वही खाती है। कभी सूखी ब्रेड, तो कभी बची हुई रोटी। चिड़िया मिन्नत करती है कि वह झट से जाकर आम के बगीचे से एक रसीला आम तोड़ लायेगी। पिंजरे ने कभी आम नहीं चखा, उसे ये जिद फिजूल लगती है।
दिन, महीना, साल..... चिड़िया बिलकुल पिंजरे की सी हो जाती है। न हंसती है, न बोलती है। बस पिंजरे की साथी होने का तमगा लिए बैठी रहती है।
पिंजरे का मालिक अपने एक दोस्त से एक दिन कहता है, "हम तो इसे यह सोचकर लाए थे कि हमारे पिंजरे का मन लगाए रखेगी। पर ये तो बिलकुल नाकारी निकली।"
चिड़िया को अपना जीवन व्यर्थ लगने लगता है। वह मर जाती है। पिंजरा अकेला हो जाता है। पिंजरे का मालिक एक और चहकती चिड़िया के पास जाता है।

12 साल

और फिर एक दिन वे कह देते हैं... क्या किया है तुमने मेरे लिए? और तुम नींद से जागते हो। नींद नहीं, शायद नशे से। 

Friday, March 19, 2021

यह वही लड़की निकली

यह वही लड़की निकली जिसने चोरी की थी। अच्छा हुआ हमने आशा आंटी को पूछ लिया, उन्हें सब पता होता है।
हमने उस लड़की से कभी नहीं पूछा। बस उसे काम पर नहीं रखा। उसने कहा था वो मम्मी से पूछकर आयेगी। 7-8 महीने में शादी है उसकी। तब तक हम उससे काम चलाने वाले थे। अब नहीं चलाएंगे। हम उससे कभी नहीं पूछेंगे कि उसने चोरी क्यों की थी। या, चोरी की थी भी या नहीं।

दो लोग

दो लोगों का साथ रहना आसान नहीं होता। अकेले जीना भी कहां आसान होता है। आपको अपना मुश्किल चुनना पड़ता है।

Wednesday, March 17, 2021

यकीन

हम सब इस यकीन से सोते हैं कि सुबह होते ही उठ बैठेंगे। आज की जिम्मेदारियों को कल पूरा करेंगे। हर यकीन अपने आप में कितना बड़ा धोखा है। नहीं?

Tuesday, March 16, 2021

पापा

 आदी को रह रहकर पापा की बातें याद आती रहती हैं। कल उन्होंने कहा कि वो पापा मम्मी को लेकर लगभग निश्चिंत ही रहते थे, क्योंकि मम्मी ने एक बार उनका टिपड़ा देखकर कहा था कि उम्र के 46वें साल तक उनके माता पिता को कुछ नहीं होगा।
आदी 40 के हैं। पापा को 6 साल और जीना था।

Saturday, March 6, 2021

चार्ली एंड द चॉकलेट फैक्ट्री

पिछले दिनों मैंने और मिष्टी ने एक नई मूवी देखी ए चार्ली एंड द चॉकलेट फैक्ट्री।
फिल्म बहुत अच्छी लगी, तो मिष्टी ने किताब मंगा ली। इसी ऑथर की और भी किताबें थीं, पर मिष्टी ने कहा कि वह एक पढ़कर देखिगी, अगर अच्छी लगी तभी बाकी मंगाएगी।
किताब आई तो कुछ पन्ने पढ़ने के बाद मिष्टी ने उससे किनारा कर लिया। अगले दिन उसके हाथ में गारफील्ड की मोटी किताब नजर आई।
मैंने पूछा, "अरे तुम तो चार्ली एंड द चॉकलेट फैक्ट्री पढ़ रही थी, वह पूरी हो गई?"
मिष्टी का एकदम सरल जवाब था, "नहीं, मुझे sad किताबें अच्छी नहीं लगतीं, तो मैंने उसे पढ़ना छोड़ दिया।"

जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है और इतना ही सरल है खुश रहना। जो आपको दुःख दे, उससे किनारा कर लीजिए, जो खुशी दे उसे चुन लीजिए। पर हम अक्सर ठीक इसका उल्टा करते हैं। 
कितना सरल है यह समझ लेना कि हर चीज हमारे लिए नहीं बनी है। 

Monday, January 18, 2021

vaccine

शनिवार को 22,643 लोगों को वैक्सीन दी गई। रविवार को महिपाल मर गया। सरकारी आंकड़ों में 3 को 2 बना देना कब मुश्किल रहा है?

Tuesday, January 5, 2021

लिखना

सूरज कभी अपने प्रेमी की राह तकती औरत लगती थी मुझे। जो सुबह नहा धोकर लाल साड़ी पहने एक दिया जलाए खड़ी हो जाती है अपने स्वामी की प्रतीक्षा में। सुबह से रात हो जाती, और वो थककर दिया अपने भाई चांद को पकड़ा जाती, कि भैया वो आए तो मुझे जगा देना, मैं थोड़ा जिराह लूं।

बहुत साल पहले लिखा था ये। ऐसा ही कुछ लिखती रहती थी। घर के आगे नीलगिरी का पेड़ था। उसके बारे में, चांद के बारे में, खदान भरने के लिए बनाए रेत के टीलों के बारे में, बहुत कुछ लिखती थी उन डायरियों में। बाबा हार साल ऑफिस से मिली एक डायरी देते थे। सबसे सुंदर वाली लपक लेती थी मैं। 
उनमें वैसा वैसा ही कुछ लिखती थी, जैसा तुम लिखते हो। 
फिर एक दिन मेरे मां बाबा मेरा भला चाहते थे, इसलिए उन्होंने वो सारी डायरियां जला दी।