Tuesday, January 5, 2021

लिखना

सूरज कभी अपने प्रेमी की राह तकती औरत लगती थी मुझे। जो सुबह नहा धोकर लाल साड़ी पहने एक दिया जलाए खड़ी हो जाती है अपने स्वामी की प्रतीक्षा में। सुबह से रात हो जाती, और वो थककर दिया अपने भाई चांद को पकड़ा जाती, कि भैया वो आए तो मुझे जगा देना, मैं थोड़ा जिराह लूं।

बहुत साल पहले लिखा था ये। ऐसा ही कुछ लिखती रहती थी। घर के आगे नीलगिरी का पेड़ था। उसके बारे में, चांद के बारे में, खदान भरने के लिए बनाए रेत के टीलों के बारे में, बहुत कुछ लिखती थी उन डायरियों में। बाबा हार साल ऑफिस से मिली एक डायरी देते थे। सबसे सुंदर वाली लपक लेती थी मैं। 
उनमें वैसा वैसा ही कुछ लिखती थी, जैसा तुम लिखते हो। 
फिर एक दिन मेरे मां बाबा मेरा भला चाहते थे, इसलिए उन्होंने वो सारी डायरियां जला दी।

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