Wednesday, March 31, 2021

छोटा आदमी

मैं छोटा आदमी हूं।
छोटी ख्वाहिशें रखता हूं।
छोटी सांसे लेता हूं।
जीवनभर छोटा ही रहूंगा।
और एक दिन छोटा ही मर जाऊंगा।

Monday, March 22, 2021

Building

I wish, this building was so high,
That I could jump and just die!

Saturday, March 20, 2021

मरने के बाद

पियूष मिश्रा का इंटरव्यू लेते हुए मैंने उनसे पूछा था, "आपके लिए सबसे बड़ा प्रश्न क्या है?"
उन्होंने उत्तर दिया था, "यही कि आदमी मरने के बाद कहां जाता है?"
मैंने उनसे पूछा था कि पता चल भी जायेगा तो क्या?
तब मुझे समझ में नहीं आता था कि यह इतना important question क्यों है।
शायद यह प्रश्न इतना जरूरी तब तक नहीं लगता, जब तक आप यहां से चले जाना नहीं चाहते। जब आप यहां से ऊब जाते हैं और दूसरी दुनिया में चले जाना चाहते हैं, तब आपको यह प्रश्न सताने लगता है। मरने से पहले मरने का डर नहीं लगता क्योंकि आप जीने से ज्यादा डर चुके होते हैं। पर अब इस बात का डर होता है कि अगर नहीं मर पाए तो बिखरे हुए टुकड़ों के साथ जीना कैसे जाती रखेंगे। और डर होता है कि मरकर भी दूसरी तरफ यही दुनिया मिली तो? यही रिश्ते, यही भूख, यही दौड़, यही ढकोसला मिला तो?

पिंजरा

हम अपने बेटों को 'पिंजरा' बना देते हैं। एक खाली पिंजरा, जो अपने आप कुछ नहीं कर सकता। जो अपने लिए कुछ.. कुछ भी नहीं कर सकता, वह अपने आप हंस बोल कैसे सकता है?
और फिर हमें उसका कुछ न होना अखरता है। पर क्योंकि अपने आप कुछ भी करना सिखाने के लिए अब बहुत देर हो चुकी है, हम इस विरान, नाकारे पिंजरे के लिए एक चिड़िया ढूंढने लगते हैं। चिड़िया मिलती है, किसी पेड़ की शाख पर बैठी चहकती हुई, अपना खाना खुद लाती हुई, हवाओं में स्वच्छंद उड़ती हुई, हंसती हुई, मुस्कुराती हुई, एक आज़द जीवन जीती हुई।
पर हम उसे ताने मारने लगते है। कैसी कुलटा है, अपना सारा काम खुद करती है, भला पिंजरे के बगैर भी कोई चिड़िया रहती है? नाक ही कटा देगी ये तो अपनी बिरादरी की!
चिड़िया को लगता है शायद ताने मारनेवाला बिलकुल ठीक कह रहा है। आखिर कोई कब तक अकेला फिरेगा? आखिर कब तक कोई सारे काम अकेला करता रहेगा। आखिर एक से भले दो। पिंजरा और मैं साथ साथ उड़ेंगे। साथ खाना लायेंगे। साथ आजाद रहेंगे!
अपने साथी को अपने जैसा ही समझकर, आंखों में घरों सपने लिए वह पिंजरे में जा बैठती है। पिंजरे का दरवाजा बंद। पिंजरा कुछ नहीं बोलता। चिड़िया चहकती है, पिंजरा चहकना नहीं जानता, सो पिंजरे का चहकना उसे बचकाना लगता है।
चिड़िया उड़ना चाहती है। पिंजरा उड़ना नहीं जानता। अपनी मजबूरी का वास्ता देकर वह चिड़िया को फिर कभी उड़ने नहीं देता।
पिंजरे का मालिक जो देता है, चिड़िया वही खाती है। कभी सूखी ब्रेड, तो कभी बची हुई रोटी। चिड़िया मिन्नत करती है कि वह झट से जाकर आम के बगीचे से एक रसीला आम तोड़ लायेगी। पिंजरे ने कभी आम नहीं चखा, उसे ये जिद फिजूल लगती है।
दिन, महीना, साल..... चिड़िया बिलकुल पिंजरे की सी हो जाती है। न हंसती है, न बोलती है। बस पिंजरे की साथी होने का तमगा लिए बैठी रहती है।
पिंजरे का मालिक अपने एक दोस्त से एक दिन कहता है, "हम तो इसे यह सोचकर लाए थे कि हमारे पिंजरे का मन लगाए रखेगी। पर ये तो बिलकुल नाकारी निकली।"
चिड़िया को अपना जीवन व्यर्थ लगने लगता है। वह मर जाती है। पिंजरा अकेला हो जाता है। पिंजरे का मालिक एक और चहकती चिड़िया के पास जाता है।

12 साल

और फिर एक दिन वे कह देते हैं... क्या किया है तुमने मेरे लिए? और तुम नींद से जागते हो। नींद नहीं, शायद नशे से। 

Friday, March 19, 2021

यह वही लड़की निकली

यह वही लड़की निकली जिसने चोरी की थी। अच्छा हुआ हमने आशा आंटी को पूछ लिया, उन्हें सब पता होता है।
हमने उस लड़की से कभी नहीं पूछा। बस उसे काम पर नहीं रखा। उसने कहा था वो मम्मी से पूछकर आयेगी। 7-8 महीने में शादी है उसकी। तब तक हम उससे काम चलाने वाले थे। अब नहीं चलाएंगे। हम उससे कभी नहीं पूछेंगे कि उसने चोरी क्यों की थी। या, चोरी की थी भी या नहीं।

दो लोग

दो लोगों का साथ रहना आसान नहीं होता। अकेले जीना भी कहां आसान होता है। आपको अपना मुश्किल चुनना पड़ता है।

Wednesday, March 17, 2021

यकीन

हम सब इस यकीन से सोते हैं कि सुबह होते ही उठ बैठेंगे। आज की जिम्मेदारियों को कल पूरा करेंगे। हर यकीन अपने आप में कितना बड़ा धोखा है। नहीं?

Tuesday, March 16, 2021

पापा

 आदी को रह रहकर पापा की बातें याद आती रहती हैं। कल उन्होंने कहा कि वो पापा मम्मी को लेकर लगभग निश्चिंत ही रहते थे, क्योंकि मम्मी ने एक बार उनका टिपड़ा देखकर कहा था कि उम्र के 46वें साल तक उनके माता पिता को कुछ नहीं होगा।
आदी 40 के हैं। पापा को 6 साल और जीना था।

Saturday, March 6, 2021

चार्ली एंड द चॉकलेट फैक्ट्री

पिछले दिनों मैंने और मिष्टी ने एक नई मूवी देखी ए चार्ली एंड द चॉकलेट फैक्ट्री।
फिल्म बहुत अच्छी लगी, तो मिष्टी ने किताब मंगा ली। इसी ऑथर की और भी किताबें थीं, पर मिष्टी ने कहा कि वह एक पढ़कर देखिगी, अगर अच्छी लगी तभी बाकी मंगाएगी।
किताब आई तो कुछ पन्ने पढ़ने के बाद मिष्टी ने उससे किनारा कर लिया। अगले दिन उसके हाथ में गारफील्ड की मोटी किताब नजर आई।
मैंने पूछा, "अरे तुम तो चार्ली एंड द चॉकलेट फैक्ट्री पढ़ रही थी, वह पूरी हो गई?"
मिष्टी का एकदम सरल जवाब था, "नहीं, मुझे sad किताबें अच्छी नहीं लगतीं, तो मैंने उसे पढ़ना छोड़ दिया।"

जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है और इतना ही सरल है खुश रहना। जो आपको दुःख दे, उससे किनारा कर लीजिए, जो खुशी दे उसे चुन लीजिए। पर हम अक्सर ठीक इसका उल्टा करते हैं। 
कितना सरल है यह समझ लेना कि हर चीज हमारे लिए नहीं बनी है।