Friday, March 24, 2023

Corporate Kahani - सुखी लोहार और दुखी राजा!

एक बार एक सुखी लोहार हुआ करता था। वो झोपड़े में रहता, लोहे के औज़ार बनाता और अपनी पत्नी और बच्चों की खूब कदर करता।
फिर एक दिन उसकी नज़र दुखी राजा के महल पर पड़ी।
उस दिन से वो महल के सपने देखने लगा।
उसका झोपड़ा अब उसे काटने लगा था। पत्नी और बच्चे जो दिन रात उसकी सेवा करते थे, अब उन्हें वो फॉर ग्रांटेड लेने लगा था। उसे लगता ये क्या रोज़ एक जैसी ही सेवा करते हैं। इनकी सेवा में कोई नयापन नहीं है। दुखी राजा की रानी को तो देखो... कभी ये पकवान लाए.. कभी वो मिष्ठान खिलाए... सेवा तो इसे कहते हैं!

सुखी लोहार अपने काम से भी बहुत प्रेम करता था। नित नए औज़ार बनाकर लोगों के काम आने में उसे बड़ा आनंद आता... लेकिन अब उसे सिर्फ़ लोगों के काम नहीं आना था। उसे एक ऐसा औज़ार पाना था जो उसे राजा जैसा बना सके।

एक दिन उसने सभा में रानी को दुखी राजा के माथे पर तिलक लगाकर, तलवार देते हुए देखा। इसके बाद सारी सभा राजा के जय-जयकार से भर गयी।
सुखी लोहार को लगा.. ये तलवार तो बड़े मज़े का औज़ार है... इसे लेते ही लोग राजा बन जाते होंगे!
उसे अपनी पत्नी पर और गुस्सा आया... अरे शादी को इतने साल हो गये और इस से इतना भी न हुआ कि मेरे लिए एक तलवार ही ले आए अपने मायके से!
सुखी लोहार ने ठान लिया कि अब वो अपनी पत्नी को त्याग देगा और रानी को अपने झोपड़े में ले आएगा। रानी की सेवा, उनके दिए तलवार और उनके नेटवर्किंग स्किल से मेरा झोपड़ा महल में बदल जाएगा।
उधर दुखी राजा की रानी भी दुखी थी। उसे दूर से सुखी लोहार का झोपड़ा दिखाई देता। वहाँ की टिमटिमाती रौशनी में सुखी लोहार की पत्नी हमेशा मुस्कराती नज़र आती। लोहार बेहद मेहनत करता नज़र आता। सारे गांववाले लोहार की नेकदिली और हुनर की भी बहुत तारीफ़ करते। रानी को मन ही मन लोहार से प्यार हो गया। 
उसे लगा शायद लोहार के झोपड़े में ही सुख छुपा है। जहां न बड़े बड़े नंबर गेम होंगे, न मेट्रिक, न कॉम्पिटिशन... ऊपर से लोहार इतना होनहार... राजा की तरह  कामचोर नहीं कि तलवार भी मैं ही पकड़ाऊँ और खानसामे से उनके लिए पकवान भी मैं ही बनवाऊँ!
बस फिर क्या था... एक रोज़ सुखी लोहार और दुखी रानी मिले और दोनों ने तय कर लिया कि अब से रानी लोहार के झोपड़े में रहेगी।
रानी ने आते ही हुकुम बजाना शुरू कर दिया कि जी लोहार के लिए ये पकवान बनाओ... वो मिष्ठान तैयार करो। बना तो अब भी सुखी लोहार की पत्नी ही रही थी ये सब। 
उसने लोहार को आगाह भी किया कि जी बना तो मैं सब पहले भी सकती थी पर आपने कभी इतना बजट ही नहीं अप्रूव किया। पर लोहार की आंखों पर तो रानी की चकाचौंध का चश्मा चढ़ा हुआ था। उसने पत्नी की हर बात को अनसुना कर दिया।
इधर लोहार ने रानी के चक्कर में काम धाम भी छोड़ रखा था। उसे लगा था कि रानी थोड़ी सेटल हो जाए तो अपने नेटवर्किंग से उसके लिए तलवार लाएगी और वो राजा बन जाएगा।
कई दिन ऐसे ही बीत गए। इन सब बातों से तंग आकर सुखी लोहार की पत्नी मायके चली गई। अब घर में न पैसा था, न खाना। 
लोहार ने रानी से आख़िर पूछ ही लिया... तुम अपनी नेटवर्किंग से मुझे राजा कब बनाओगी?
रानी ने जवाब दिया... "राजा अपनी मेहनत से राजा बना था पर अब आलसी और लालची हो चुका था इसलिए दुखी था। इसीलिए उसका साथ छोड़कर मैं तुम्हारे पास आयी थी... पर मेरे चक्कर में तुमने अपनी स्किल भी खो दी, लोयल एंप्लॉयी (पत्नी) को भी और अपने रेगुलर कस्टमर्स को भी खो दिया जो तुम्हारा असली नेटवर्क था, जिसके ज़रिये तुम भी राजा बन सकते थे।"
रानी को भी समझ आ गया कि दूर से देखने में सब बहुत अच्छा लगता है पर जिसे फ़ंड के बिना कुछ करने की आदत न हो वो सिर्फ महल ही चला सकता है, झोपड़ा नहीं।
इस तरह सुखी लोहार का सारा फ़ंड खत्म करके रानी अपने महल वापस चली गई।
सुखी लोहार की पत्नी हद दर्जे की लोयल थी। सो, वो वापस अपने पति के पास आ गई। पर अब वो बस काम करने के लिए करती। लोहार के लिए उसके मन में जो प्यार और सम्मान था वो जा चुका था।
सुखी लोहार की काम करने की आदत छूट गई। दोबारा औज़ार बनाने में अब उसे सालों लग जाएंगे. .. और लोग तब तक शायद उसे भूल जाएंगे!