Monday, December 30, 2019

चलो! एक बार फिर हिन्दू और मुसलमान बन जाते हैं।

हाँ चलो! एक बार फिर हिन्दू और मुसलमान बन जाते हैं।
सियासतदारों के हाथों का सामान बन जाते हैं।

दुश्मनों से कह दो जश्न की तैयारी कर लें
हम अपनों का लहू देकर उनका जाम बन जाते हैं।

हाँ चलो! एक बार फिर हिन्दू और मुसलमान बन जाते हैं।

ये एजुकेशन वेजुकेशन सब छोड़ो यार
इतिहास क्यूं पढ़े भला, लॉ जानके क्या करना है
इससे अच्छा तो हम वॉट्सएप यूनिवर्सिटी के कद्रदान बन जाते हैं।

हाँ चलो! एक बार फिर हिन्दू और मुसलमान बन जाते हैं।

नासा क्या करता है, उससे हमको क्या,
ईसरो गया तेल लेने, अर्थव्यवस्था को मारो गोली
बस बंटवारे की निति के हम गुलाम बन जाते हैं।

हाँ चलो! एक बार फिर हिन्दू और मुसलमान बन जाते हैं।

हम पढ़े लिखे हैं तो क्या, हम एक पक्ष ही देखेंगे
जो सहमत नहीं लगता हमसे, उसको गाली दे देंगे
न गीता पढ़ी न कुरान, फिर भी पंडित और इमाम बन जाते हैं।

हाँ चलो! एक बार फिर हिन्दू और मुसलमान बन जाते हैं।

अरे अब तक न अक्ल आई क्या तुमको?
बच्चे हो? अब तक न अक्ल आई क्या तुमको?
ये नेता ही हैं ... गौर से देखना.. कि.. ये नेता ही हैं
जो कुर्सी के लिए कभी अल्लाह तो कभी राम बन जाते हैं।
सत्ता के लिए ये कभी हिन्दू तो कभी मुसलमां बन जाते हैं।

अपनी-अपनी कौम को बचाने का दावा करने वालों
ये कैसे मज़हब हैं कि हम इंसानियत छोड़कर,
हैवान बन जाते हैं?
आखिर क्यों...हम हिन्दू और मुसलमान बन जाते हैं?

- मानबी








Friday, October 18, 2019

कविता

अब कविता नहीं लिखी जाती...

बच्चों के टिफ़िन में क्या रखूँ 
सहकर्मी को छुट्टी दूँ कि नहीं दूँ?
सब्ज़ियों में भिंडी लाऊ कि कद्दू
म्यूच्यूअल फंड में इन्वेस्ट करुँ कि गहने खरीद लूँ 
मोटापे ले लिए वॉक करुँ कि जिम जाऊँ 
अच्छा दिवाली पे क्या पहनूँ
होंडा ले लूँ या मारुति से काम चलाऊँ 
अरे अब डायट में और क्या खाऊ?
 
कविता.... 

बच्चों के कपड़े लोकल दुकान से खरीदूँ या ऑनलाइन मंगाऊँ 
उफ्फ़ गाड़ी खराब हो गयी अब बाज़ार कैसे जाऊँ

कविता... नहीं अब कविता नहीं लिखी जाती....


Tuesday, October 1, 2019

कोशिश

जहाँ पर हो, वहीं पर रहो,
कहीं और होने की कोशिश क्यूँ है?

Monday, September 30, 2019

मांग

मैं किसीसे क्या माँगू
कोई क्या देगा मुझे
जो खुदा दे न सका
उसका बंदा क्या देगा मुझे

Sunday, September 29, 2019

वक़्त

वक़्त पे कहीं पर पहुंचने के लिए
मैं वक़्त से पहले निकल आया कहीं से

दो जगह।

हम जब जहाँ हैं, वहीं के क्यूँ नहीं होकर रहते
क्यूँ एक ही वक़्त में दो जगहों के होना चाहते हैं

सैलरी

न जाने कितनी कहानियाँ लिखनी थी बाकी,
न जाने कितनी तस्वीरें रह गयी अधूरी...
न जाने कौनसा गाँव बसने से रह गया,
न जाने कौनसी तमन्ना न हो सकी पूरी...
खैर छोड़ों... कल सैलरी आनी है!!

~ #मानबी

भीड़

हम चल पड़ते हैं..
भीड़ के साथ..
एक अक्षर भी नहीं पढ़ते इतिहास का
कुछ कदम चलकर देखते भी नहीं
सोचते नहीं... पूछते नहीं...
रुकते नहीं, जूझते नहीं...
हम बस चल पड़ते हैं...
भीड़ के साथ!
~ #मानबी

Tuesday, May 28, 2019

तकिया

सारा दिन हँसाता रहा जो
क्या रातों को तकिये में मुँह छुपा कर वो रोया होगा?

Sunday, April 7, 2019

सम्मानता

समानता लाना इतना असान तो नहीं
महिलाएं तो पुरुष बन  गयी
मर्दो का औरत बन पाना असान तो नहीं

मैं नौकरी करके कमाने लगी हुँ
तुम बच्चा कब पालोगे?
मैं बाहर जाकर सब्ज़ी लाने लगी हुँ
तुम खाना कब बनाओगे?

गैस बुक करना, सीलंडर लगाना, ज़रुरत पड़ने पर बाइक चलाकर लड़की भगाना, हर चीज़ जो तुम करते थे मैं वो अब करने लगी हुँ
मुन्नू को नहलाना, स्कूल से लाना, ज़रुरत पड़े तो सास के पांव दबाना
हर वो चीज़ जो मैं करती हुँ, तुम कब कर पाओगे?

अब मैं भी ओकेशनल ड्रिंकर हुँ, स्मोकिंग ज़ोन में कश लगाती हुँ
सुहागरात पर ढूध का गिलास लिये बोलो तुम कब शरमाओगे?

समानता नहीं हम  तुमसे केवल 'सम्मान'ता चाहती हैं
औरतें मर्द नहीं, तुम्हारी तरह केवल इंसान बनना चाहती  हैं।