Saturday, March 20, 2021

पिंजरा

हम अपने बेटों को 'पिंजरा' बना देते हैं। एक खाली पिंजरा, जो अपने आप कुछ नहीं कर सकता। जो अपने लिए कुछ.. कुछ भी नहीं कर सकता, वह अपने आप हंस बोल कैसे सकता है?
और फिर हमें उसका कुछ न होना अखरता है। पर क्योंकि अपने आप कुछ भी करना सिखाने के लिए अब बहुत देर हो चुकी है, हम इस विरान, नाकारे पिंजरे के लिए एक चिड़िया ढूंढने लगते हैं। चिड़िया मिलती है, किसी पेड़ की शाख पर बैठी चहकती हुई, अपना खाना खुद लाती हुई, हवाओं में स्वच्छंद उड़ती हुई, हंसती हुई, मुस्कुराती हुई, एक आज़द जीवन जीती हुई।
पर हम उसे ताने मारने लगते है। कैसी कुलटा है, अपना सारा काम खुद करती है, भला पिंजरे के बगैर भी कोई चिड़िया रहती है? नाक ही कटा देगी ये तो अपनी बिरादरी की!
चिड़िया को लगता है शायद ताने मारनेवाला बिलकुल ठीक कह रहा है। आखिर कोई कब तक अकेला फिरेगा? आखिर कब तक कोई सारे काम अकेला करता रहेगा। आखिर एक से भले दो। पिंजरा और मैं साथ साथ उड़ेंगे। साथ खाना लायेंगे। साथ आजाद रहेंगे!
अपने साथी को अपने जैसा ही समझकर, आंखों में घरों सपने लिए वह पिंजरे में जा बैठती है। पिंजरे का दरवाजा बंद। पिंजरा कुछ नहीं बोलता। चिड़िया चहकती है, पिंजरा चहकना नहीं जानता, सो पिंजरे का चहकना उसे बचकाना लगता है।
चिड़िया उड़ना चाहती है। पिंजरा उड़ना नहीं जानता। अपनी मजबूरी का वास्ता देकर वह चिड़िया को फिर कभी उड़ने नहीं देता।
पिंजरे का मालिक जो देता है, चिड़िया वही खाती है। कभी सूखी ब्रेड, तो कभी बची हुई रोटी। चिड़िया मिन्नत करती है कि वह झट से जाकर आम के बगीचे से एक रसीला आम तोड़ लायेगी। पिंजरे ने कभी आम नहीं चखा, उसे ये जिद फिजूल लगती है।
दिन, महीना, साल..... चिड़िया बिलकुल पिंजरे की सी हो जाती है। न हंसती है, न बोलती है। बस पिंजरे की साथी होने का तमगा लिए बैठी रहती है।
पिंजरे का मालिक अपने एक दोस्त से एक दिन कहता है, "हम तो इसे यह सोचकर लाए थे कि हमारे पिंजरे का मन लगाए रखेगी। पर ये तो बिलकुल नाकारी निकली।"
चिड़िया को अपना जीवन व्यर्थ लगने लगता है। वह मर जाती है। पिंजरा अकेला हो जाता है। पिंजरे का मालिक एक और चहकती चिड़िया के पास जाता है।

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