फिल्म बहुत अच्छी लगी, तो मिष्टी ने किताब मंगा ली। इसी ऑथर की और भी किताबें थीं, पर मिष्टी ने कहा कि वह एक पढ़कर देखिगी, अगर अच्छी लगी तभी बाकी मंगाएगी।
किताब आई तो कुछ पन्ने पढ़ने के बाद मिष्टी ने उससे किनारा कर लिया। अगले दिन उसके हाथ में गारफील्ड की मोटी किताब नजर आई।
मैंने पूछा, "अरे तुम तो चार्ली एंड द चॉकलेट फैक्ट्री पढ़ रही थी, वह पूरी हो गई?"
मिष्टी का एकदम सरल जवाब था, "नहीं, मुझे sad किताबें अच्छी नहीं लगतीं, तो मैंने उसे पढ़ना छोड़ दिया।"
जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है और इतना ही सरल है खुश रहना। जो आपको दुःख दे, उससे किनारा कर लीजिए, जो खुशी दे उसे चुन लीजिए। पर हम अक्सर ठीक इसका उल्टा करते हैं।
कितना सरल है यह समझ लेना कि हर चीज हमारे लिए नहीं बनी है।
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