Monday, July 27, 2020

कोरोना

28 जुलाई 2020

मार्च से शुरू हुई इस भयानक महामारी ने पूरे विश्व में अब तक 656000 जानें ले ली है, और भारत में 33000 के ऊपर। ये आंकड़े रोज़ थोड़े थोड़े बढ़ते हैं और साथ में बढ़ता है डर।
अभी अभी रवीश कुमार ने फेसबुक पर बिहार का एक वीडियो शेयर किया, जिसमें एक आदमी अस्पताल के सामने अपनी अधमरी बेटी को गोद में लिए चिल्ला रहा है ... कोई तो डॉक्टर को बुला दो.... पानी दे दो ... दूसरी बेटी ( जैसा प्रतीत हुआ ) लोगों से मदद मांग रही है। इतने में एक आदमी पानी की बोतल लिए आता है, पानी पिलाने लगता है और पीछे से आवाज़ आती है - ' दूर से दूर से '। 
इतने में एक सैनिक स्ट्रेचर लेकर आता है। पिता से बच्ची को उठाया नहीं जा रहा। वह मदद मांगता है। दृश्य यही खत्म हो जाता है। उसे किसीने छुआ या नहीं पता नहीं। उन्हें कोई डॉक्टर मिला या नहीं, पता नहीं। वो पिता अपनी बच्ची को बचा पाया या नहीं, पता नहीं!

एक और दृश्य में एक व्यक्ति सड़क पर पड़ा तड़प रहा है। पास ही में एक हवलदार और एक और व्यक्ति बातें कर रहे हैं, पर इस तड़पते व्यक्ति के लिए कुछ नहीं कर रहे। इस व्यक्ति का शायद पता है। शायद दम तोड़ चुका होगा। 33000 दरअसल सही आंकड़ा नहीं है। कुछ सौ और भी है इसमें। इन्हीं सौ में से एक ये भी बन गया होगा। महज एक आंकड़ा।

https://www.facebook.com/618840728314078/posts/1518070235057785/

उधर ट्विटर पर #JusticeForSushantSinghRajput अब भी ट्रेंड कर रहा है।
मैं सोच रही हूं आज दाल ढोकली बना लूं। रेसिपी देखनी है अभी!

Sunday, July 26, 2020

लिखना

मैं - पहाड़ों तक जानेवाले रास्तों पर मुझे उल्टियां होती है।

वो - और समंदर?

मैं - समंदर के पास ही रहती थी, पर कभी जाना नहीं हुआ। बस इसी ग्लानि में मैं अब समंदर के पास नहीं जा पाती।

वो - पर यह जीवन तो है। और यह संसार भी।

मैं - इनका क्या? ये तो बेकार पड़ी चीज़ें हैं।

वो - पहाड़ सा जीवन। और समंदर सा संसार। डूब रही हो। यहीं पर लिख लो। अच्छा लिखोगी।

रूटीन

हर रोज़ वही रूटीन ...नाश्ता, खाना, सफाई, ईमेल, एडिट, चिढ़ना, मीटिंग, प्लांनिंग, सवाल जवाब, बेमतलब का हिसाब, खाना, सफाई, ईमेल...

अजीब सी थकान है। सब रुक जाने का इंतजार।

क्या बाबा नहीं थकते? उठना, मालिश करवाना, 12 बजे खाना, सो जाना, 4 बजे चाय, 7 बजे खाना, सो जाना... उठना, मालिश करवाना, 12 बजे खाना...

क्या वो भी इंतजार करते हैं... सब रुक जाने का??

Friday, July 24, 2020

चिट्ठियां

तुम्हें लिखीं बाकी चिट्ठियों की तरह शायद ये वाली भी मेरी दराज़ में ही रह जाए। फिर भी ... तुम्हें लिखना ... तुम्हारे बारे में लिखना मेरी नियति है।

मृत्यु

हम मृत्यु से इतना घबराते क्यों हैं? आखिर मृत्यु का विकल्प जीवन ही तो है... यही घिसा-पिटा, रूखा-सूखा जीवन। 
वह और जी भी लेता तो क्या करता... अंत में तो मर ही जाता।

उस स्टेज पे मरना कितना सुखदायी है, जब आपकी रात प्रेमिका से बातें करते-करते बीत जाती है और अगले दिन ऑफिस में नींद आती है।

उस स्टेज पर चले जाना कितना अच्छा है जब माँ नींद से नहीं जगाती है... ' सोने दो न ', कहकर बाबा को परे हटाती है।

पढ़ते-पढ़ते मर जाना जीवन के सभी संघर्षों से बच जाना है। 

उस स्टेज पर मर जाना जब अब भी आप जी रहे हैं - अच्छा है।

जीते जी मर जाने के बाद मर जाना - प्रथा है।

काश मरने वालों को ये पता होता। 

अचानक

अचानक मन में कई ख्याल आते हैं। रोटी बना रही होती हूं। सोचती हूं दाल चढ़ाकर ये सब लिख दूंगी। फिर बिटिया मैथ्स का कोई सवाल लेकर आ जाती है। उसे हल करते करते मेरे ख्याल ओझल हो जाते हैं। मैं सब भूल जाती हूं। 
अरे! दाल पक गई। नमक थोड़ा कम है। 

Easy to leave

I don't enjoy what I am doing... Lost my dreams...lost my passion...lost 'me'... Goid for me... Easy to leave...

Sunday, July 19, 2020

थोड़ा सा मैं

मुझमें जो थोड़ा सा मैं बचा है... क्या उससे बचना मुमकिन है? पता नहीं कहां से उचक कर आ जाता है वो थोड़ा सा मैं... और फिर तुम थोड़ा थोड़ा कर उसे कुचल देते हो। बचा कुचा जो भी है, उसे बचा रहने दूं या उसे भी तुम बना दूं?

मुझमें जो थोड़ा सा मैं है, क्या उसे भी तुम बना दूं?

Saturday, July 18, 2020

लिखना

लिखना आसान है, 
सच लिखना थोड़ा मुश्किल, 
जो सभी को भाए ऐसा सच लिखना थोड़ा और मुश्किल,
जो सभी भाए और बिक भी जाए ऐसा सच लिखना बहुत मुश्किल।

Monday, July 13, 2020

जीवन बीत गया।

मैं बहुत कुछ लिख सकती थी,
कवि, शायरा, लेखिका बन सकती थी,
और फिर... कमरे की सफाई 
और महीने की कमाई में 
जीवन बीत गया!

मैं किताबें पढ़ सकती थी,
उपन्यास रच सकती थी,
इतिहास लिखकर, 
इतिहास रच सकती थी,
और फिर.... 
मोबाइल के मोह में,
और टी वी की टोह में
जीवन बीत गया।

मैं आज़ाद हो सकती थी,
अपना अनाज, अपनी तकनीक,
अपना सामान खुद बना सकती थी,
और फिर..
चीन के सस्ते माल,
और अमरीका के बवाल के चक्कर में
जीवन बीत गया।

Sunday, July 12, 2020

सुख की परिभाषा

तुम्हारे और मेरे सुख की परिभाषा में उतना ही फर्क है, 
जितना फाइव स्टार होटल के बाथरूम में लगे महंगे शावर में 
और पहाड़ों की बारिश में है।
- मानबी

तुम्हारे बारे में

Manav Kaul की लिखी किताब 'तुम्हारे बारे में' के मध्य में हूँ। हर किताब के कुछ उद्धरण होते हैं, जिन्हें आप अपनी डायरी में उकेर लेते हैं। फेसबुक, ट्विटर पर साझा कर इतराते हैं, किसी बहस के बीच इस्तेमाल कर जीत जाते हैं... ऐसे उद्धरण चंद ही होते हैं हर किताब में। बहुत अच्छी किताब हो तो हर पन्ने पर एक।

पर यह किताब ही उद्धरणों की है। हर वाक्य को बार-बार पढ़ने को जी करता है। हर वाक्य को ज्यों का त्यों लिख डायरी भर देने का मन होता है। हर एक लाइन को सोशल मीडिया पर शेयर कर इठलाने की इच्छा हो आती है।
तुम्हारे बारे में इतना ही कहूँगी मानव कि तुम्हारा लिखा हुआ बहती नदी है। मेरा सारा लिखा हुआ तुम्हारे सामने एक लोटा मैला पानी भर है।

- मानबी

डर

हम मरने से शायद इसलिए डरते हैं,
क्योंकि हम जीते-जी जीते ही नहीं...

- मानबी
#randomthoughts 

(Reading Manav Kaul these days :) )