Thursday, June 16, 2016

बाबा क्या बनना चाहते थे?

https://youtu.be/eYqEpuifLI8

हम सभी को अपने पिता से कुछ न कुछ शिकायत होती है। मुझे भी थी... मुझे लगता कि शायद मैं पत्रकार बन सकती थी या लेखक बन सकती थी पर बाबा ने मुझे इंजीनियर बना दिया।
मैं क्या बनना चाहती थी ये तो मैंने अक्सर सोचा। पर बाबा क्या बनना चाहते थे?? कभी ख्याल ही नहीं आया इस बात का। ज़ाहिर है वो स्टोर कीपर तो नहीं बनना चाहते होंगे न।
बाबा कहते है वो मैथ्स में बहुत अच्छे थे। क्या पता वो इंजीनियर ही बनना चाहते हो। क्या पता उन्होंने सोचा कि जैसे उनके इंजीनियर होने से हमारी ज़िन्दगियों में काफी कुछ बदल जाता वैसे ही हमारे इंजीनियर बनने से हमारे बच्चों की ज़िंदगियाँ बदल जाए।
बाबा को मैंने कभी अपने लिये देखा कोई ख्वाब बांटते नहीं सुना कि मैं ये करना चाहता था या वो बनना चाहता था। शायद हमारी ज़रूरतो के आगे उन्हें स्टोर कीपर ही बने रहना ठीक लगा।
उन्हें मैंने ड्रामा ऑर्गेनायिस करते हुए देखा है। अलग अलग प्रोग्राम्स का मैनेजमेंट करते देखा है। और इन सबमे डूबते देखा है। क्या पता वो थिएटर करना चाहते हो। क्या पता वो इवेंट मेनेजर बन सकते थे।
पर हमने कभी पूछा ही नहीं उनसे ये सब।

अपनी कहानी की मंथरा को पहचाने।

हम सभी रामायण की कथा बचपन से सुनते और पढ़ते आ रहे है। हर साल रावण को जलाकर हम बुराई पर अच्छाई की जीत को मनाते है। हमे हमेशा ये बताया गया है कि रावण ही रामायण का असली खलनायक है।

हाँ! रावण खलनायक था पर मेरे मत में रामायण का असली खलनायक या कह लीजिये खलनायिका कोई और ही है। नहीं, मैं कैकयी या शूर्पणखा की बात नहीं कर रही। रामायण में घटे सभी अनहोनियों की जड़ यदि कोई है तो वो है कैकयी की दासी मंथरा

मंथरा कैकेयी के लिए माँ सामान थी। मंथरा ने उसे पाल पोसकर बड़ा किया था। कैकयी को अंत तक ये कभी समझ में नहीं आया कि भलाई की आड़ में मंथरा उससे उसके जीवन का सबसे बड़ा दुष्कर्म करा रही है।

हमारे जीवन में भी कई बार ऐसी कई मंथरायें आ जाती है, जो अपनेपन की आड़ में हमारी सोच और बुद्धि को दूषित कर हमारे जीवन को नष्ट करके दम लेती है। और हम अपनी बर्बादी का दोषी रावण को ही समझते रहते है। पर हम ये नहीं समझते कि हमारी बुद्धि पर यदि कोई मंथरा हावी न हो तो शायद हमारी कहानी में कभी रावण के आने की जगह ही न बने।

आपके जीवन की मंथरा चाहे आपके कितने भी करीब का व्यक्ति क्यों न हो, यदि रिश्ते या दोस्ती को दरकिनार करके आपने इसे अपने से दूर नहीं किया तो आपका भी वही हश्र होगा जो कैकयी का हुआ!

- मानबी कटोच

Thursday, June 9, 2016

पिता का कर्तव्य!

कुछ रोज़ पहले कॉलेज के व्हाट्स अप ग्रुप पर चर्चा हो रही थी। हमारे एक दोस्त काम के सिलसिले में विदेश जा रहे थे। कुछ 6 महीने की बात थी तो परिवार को अपने साथ ले जाना मुमकिन नहीं था।

सभी दोस्त उनकी तरक्की पर खुश हुए। बधंईयां दी। पर फिर वे कुछ इमोशनल से हो गए। बोले, बेटा सिर्फ 6 माह का है, खूब खेलता है, नयी नयी चीज़े करने लगा है, बहुत याद आएगा... शायद जब तक मैं वापस आऊंगा, मुझे भूल चूका होगा। हम सबने सांत्वना दी कि ऐसा नहीं होता। और आखिर तुम उसके भविष्य के लिए ही तो बाहर जा रहे हो।

वे कुछ शांत हुए। पर हर माँ बाप उनकी उलझन समझ सकता होगा। पिता ऐसे ही होते है। कहते नहीं कि उन्हें पास रहकर अपने बच्चे को बड़ा होता देखना है, उसे संभालना है, उसे कहानियां सुनानी है, रोये तो उसे हँसाना है या फिर घंटो उसे गोदी में लिए खेलना है। वो अपने बच्चे के भविष्य के लिए इन सारे सुनहरे पलो को छोड़कर बाहर मेहनत करने के लिए निकल पड़ता है।

इसके लिए बाहर तो उसकी वाहवाही होती है कि कितना काबिल पिता है। पर कई दफा घर के लोग ही उसे ये कहकर नकारा बाप साबित करने पे तुले होते है कि इसे तो इस वक़्त अपने बीवी बच्चों के पास होना चाहिए था।

पिता इन सब लांछनों को सुनकर भी अनसुना करके बस अपना काम करता रहता है। वो इस हकीकत को जानता है कि जिस ऐशो आराम के ख्वाब वो अपने बीवी बच्चों के लिए देख रहा है, वो उनके पास रहकर कभी नहीं दिला सकता। उसके लिए उसे अपना मन मारकर उनसे दूर जाना ही होगा।

सोचिये अगर एक छोटे से घर को चला रहे हमारे पिता से हम इस बात की अपेक्षा रखते है कि वो घर पर बैठा बस हमारे रोने पर हमे चुप न कराता रहे बल्की बहार जाकर उस खाने का इंतज़ाम करे जो हमे भूख लगने पर खिला सके या उस खिलौने का इंतज़ाम कर सके जो हमारे रोने पर हमे दे सके तो हम देश के प्रधानमंत्री से ऐसी आशा क्यों रखते है?