Saturday, December 2, 2023

कई साल बाद

कई साल बाद...
जब तुम मेरे लिए 
बहुत कुछ करोगे..

तब शायद..
मुझे कुछ भी अच्छा न लगे!!!

Sunday, August 27, 2023

Taali

Kal taali dekhi. Ganesh ki ShreeGauri Sawant banne ki kahani. Usse pehle Bird of Desk dekhi thi. Dono hi kahaniyo me ek samaanta.... Ek aurat ek purush ke shareer me kaid... us kaid ki ghutan!
Gauri ke paas zariya nahi tha fir bhi usne apne man aur shareer ko ek jaisa banane ko chuna. Uska man uske shareer se ab mel khata hai.
Ritu ke paas sab kuch tha par unhone apne man ki ki aur shareer ko man jaisa banaana nahi chaha.
Main jaanti hu is sangharsh aur dard ka koi saani nahi hai. Par kabhi kabhi sochti hu... kya hum sab isi sangharsh ke shikaar nahi hai.
Kya hum shareer se wo hai...jo man se hona chahte hai?
Main lekhak hona chahti hu. Mann aisi hi befuzul ki baatein soch sochkar likhte rehna chahta hai  ..aur shareer ko kewal dusro ka likha padna hai. Dusre ko lekhak banta dekhna hai.
Mann aur shareer ka mel kitno ko naseeb hai?

Tuesday, August 1, 2023

Take Care

Take care!
अपना ध्यान रखना!
कितने खोखले शब्द हैं ये...

कौन रख पाता है खुद, खुद का ध्यान?

Thursday, June 22, 2023

रानी दुर्गावती



क्यों नहीं इतिहास कहता वीरगाथा इन रानियों की?
क्यों नहीं भारत सुनाता कुर्बानियां इन रानियों की?

है समय, तुम बदल सकते हो समय का प्रवाह
उद्घोष हो इन रानियों की, भारत करो कर्तव्य निर्वाह!

वीरगति को प्राप्त हुई थीं रानी दुर्गावती आज
कोटि कोटि नमन लिखकर पहनाओ उनको विजय ताज!

Saturday, May 27, 2023

Tu hai to mujhe phir aur kya chahiye

तू है तो मुझे फिर और क्या चाहिए....

ये गाना सुनते सुनते बस तुम याद आते हो। मैं हमारी तस्वीरों से इसकी एक रील भी बना देती हूँ। लेकिन तुम्हें भेजती नहीं।
फिर दोबारा ये गाना सुनते हुए सोचती हूँ... क्या इसे सुनते हुए तुम्हें भी मेरा चेहरा याद आता होगा?
तो फिर तुम क्यों नहीं भेजते मुझे ये गाना?

Sunday, May 14, 2023

माँ

14 May 2023

उड़ना चाहे.. 
तो उड़ने देना!

ख्वाहिशें उसकी भी हैं ...
पूरी करने देना!

माँ को क़ुरबानी 
के पैमाने पर 
मत आंकना!

खुद को मिटाकर 
तुम्हें बनाने की शर्त 
मत रखना!

Tuesday, May 2, 2023

सुंदर स्त्रियां!

सुंदर स्त्रियां 
भरे स्तन वाली 
सभी को भाती हैं...

भरे हृदय वाली स्त्रियां 
किसी को नहीं भाती!

सुंदर स्त्रियां 
तीखे नयन नक्श वाली 
सभी को भाती हैं...

तीखे दिमाग वाली स्त्रियां 
किसी को नहीं भाती!

सुंदर स्त्रियां 
लंबी कद वाली 
सभी को भाती हैं...

लंबी ज़ुबान वाली स्त्रियां 
किसी को नहीं भाती!

सुंदर स्त्रियां 
साफ रंग-रूप वाली 
सभी को भाती हैं..

साफ़ बातें करने वाली स्त्रियां 
किसी को नहीं भाती!

Tuesday, April 25, 2023

घर जहाँ तुम, तुम हो सकती हो!

घर!
जहां आकर ब्रा उतार फेंक सकती हो तुम!

घर!
जहां पाजामे में दिनभर टहल सकती हो तुम!

घर!
जहां रात की खामोशी का डर नहीं!

घर!
जहां 'लोग क्या कहेंगे' की फिक्र नहीं!

घर!
जहां की फर्श हाई हील नहीं मांगती!

घर!
जहां का आईना 
मेकअप के बगैर भी हसीन है!

घर!
जहां तुम हो सकती हो 
तुम!

काश पूरी दुनिया 'घर' होती 
तुम कहीं भी जाओ
तुम होती!

Friday, April 21, 2023

Corporate Kahani - एक गंदी मछली!

एक छोटा सा तालाब था। इंसानी रिहायशी से कोसों दूर। साफ़, निश्छल, सुंदर... हर गंदगी से परे... बिल्कुल ख़ाली!
इस तालाब को एक मछली ने खोज निकाला था। उसे यहाँ इतना अच्छा लगा कि वह अपनी तरह की और मुट्ठीभर मछलियाँ यहाँ ले आयी। उसने कभी बाकी मछलियों के साथ रानी वाला व्यावहार तो नहीं किया था पर क्योंकि उसने ही सभी मछलियों को यह राह दिखाई थी, इसलिए सब उसे रानी मछली बुलाने लगे। 
ये सभी मछलियाँ एक दूसरे के साथ मिलजुलकर, बड़े प्यार से रहतीं! उन सबका एक ही मकसद था- इस तालाब जितना हो सके साफ़ रखना!
बरसों बीत गए। रानी मछली की छत्र-छाया में सभी मछलियाँ खुश थीं। तालाब भी उतना ही साफ़ था जितना सालों पहले इन मछलियों के आने से पहले था! ब्लकि शायद उससे भी ज्यादा साफ़ क्योंकि ये मछलियाँ ठहरे पानी से पैदा होने वाली गंदगी भी साफ़ करती रहती थीं!

पर फिर एक दिन अचानक रानी मछली, एक नयी मछली को तालाब में ले आयी। ये रानी मछली की पुरानी सहेली थी, जो समुंदर में उसके साथ घूमा करती थी। इस नयी मछली का कहना था कि समुंदर में सालों से रहते हुए उसने कई ऐसे पैंतरे सीखे हैं जो रानी मछली और उसकी प्रजा के काम आ सकते हैं और तालाब को और बेहतर बना सकते हैं।
कुछ मछलियों ने 

Friday, March 24, 2023

Corporate Kahani - सुखी लोहार और दुखी राजा!

एक बार एक सुखी लोहार हुआ करता था। वो झोपड़े में रहता, लोहे के औज़ार बनाता और अपनी पत्नी और बच्चों की खूब कदर करता।
फिर एक दिन उसकी नज़र दुखी राजा के महल पर पड़ी।
उस दिन से वो महल के सपने देखने लगा।
उसका झोपड़ा अब उसे काटने लगा था। पत्नी और बच्चे जो दिन रात उसकी सेवा करते थे, अब उन्हें वो फॉर ग्रांटेड लेने लगा था। उसे लगता ये क्या रोज़ एक जैसी ही सेवा करते हैं। इनकी सेवा में कोई नयापन नहीं है। दुखी राजा की रानी को तो देखो... कभी ये पकवान लाए.. कभी वो मिष्ठान खिलाए... सेवा तो इसे कहते हैं!

सुखी लोहार अपने काम से भी बहुत प्रेम करता था। नित नए औज़ार बनाकर लोगों के काम आने में उसे बड़ा आनंद आता... लेकिन अब उसे सिर्फ़ लोगों के काम नहीं आना था। उसे एक ऐसा औज़ार पाना था जो उसे राजा जैसा बना सके।

एक दिन उसने सभा में रानी को दुखी राजा के माथे पर तिलक लगाकर, तलवार देते हुए देखा। इसके बाद सारी सभा राजा के जय-जयकार से भर गयी।
सुखी लोहार को लगा.. ये तलवार तो बड़े मज़े का औज़ार है... इसे लेते ही लोग राजा बन जाते होंगे!
उसे अपनी पत्नी पर और गुस्सा आया... अरे शादी को इतने साल हो गये और इस से इतना भी न हुआ कि मेरे लिए एक तलवार ही ले आए अपने मायके से!
सुखी लोहार ने ठान लिया कि अब वो अपनी पत्नी को त्याग देगा और रानी को अपने झोपड़े में ले आएगा। रानी की सेवा, उनके दिए तलवार और उनके नेटवर्किंग स्किल से मेरा झोपड़ा महल में बदल जाएगा।
उधर दुखी राजा की रानी भी दुखी थी। उसे दूर से सुखी लोहार का झोपड़ा दिखाई देता। वहाँ की टिमटिमाती रौशनी में सुखी लोहार की पत्नी हमेशा मुस्कराती नज़र आती। लोहार बेहद मेहनत करता नज़र आता। सारे गांववाले लोहार की नेकदिली और हुनर की भी बहुत तारीफ़ करते। रानी को मन ही मन लोहार से प्यार हो गया। 
उसे लगा शायद लोहार के झोपड़े में ही सुख छुपा है। जहां न बड़े बड़े नंबर गेम होंगे, न मेट्रिक, न कॉम्पिटिशन... ऊपर से लोहार इतना होनहार... राजा की तरह  कामचोर नहीं कि तलवार भी मैं ही पकड़ाऊँ और खानसामे से उनके लिए पकवान भी मैं ही बनवाऊँ!
बस फिर क्या था... एक रोज़ सुखी लोहार और दुखी रानी मिले और दोनों ने तय कर लिया कि अब से रानी लोहार के झोपड़े में रहेगी।
रानी ने आते ही हुकुम बजाना शुरू कर दिया कि जी लोहार के लिए ये पकवान बनाओ... वो मिष्ठान तैयार करो। बना तो अब भी सुखी लोहार की पत्नी ही रही थी ये सब। 
उसने लोहार को आगाह भी किया कि जी बना तो मैं सब पहले भी सकती थी पर आपने कभी इतना बजट ही नहीं अप्रूव किया। पर लोहार की आंखों पर तो रानी की चकाचौंध का चश्मा चढ़ा हुआ था। उसने पत्नी की हर बात को अनसुना कर दिया।
इधर लोहार ने रानी के चक्कर में काम धाम भी छोड़ रखा था। उसे लगा था कि रानी थोड़ी सेटल हो जाए तो अपने नेटवर्किंग से उसके लिए तलवार लाएगी और वो राजा बन जाएगा।
कई दिन ऐसे ही बीत गए। इन सब बातों से तंग आकर सुखी लोहार की पत्नी मायके चली गई। अब घर में न पैसा था, न खाना। 
लोहार ने रानी से आख़िर पूछ ही लिया... तुम अपनी नेटवर्किंग से मुझे राजा कब बनाओगी?
रानी ने जवाब दिया... "राजा अपनी मेहनत से राजा बना था पर अब आलसी और लालची हो चुका था इसलिए दुखी था। इसीलिए उसका साथ छोड़कर मैं तुम्हारे पास आयी थी... पर मेरे चक्कर में तुमने अपनी स्किल भी खो दी, लोयल एंप्लॉयी (पत्नी) को भी और अपने रेगुलर कस्टमर्स को भी खो दिया जो तुम्हारा असली नेटवर्क था, जिसके ज़रिये तुम भी राजा बन सकते थे।"
रानी को भी समझ आ गया कि दूर से देखने में सब बहुत अच्छा लगता है पर जिसे फ़ंड के बिना कुछ करने की आदत न हो वो सिर्फ महल ही चला सकता है, झोपड़ा नहीं।
इस तरह सुखी लोहार का सारा फ़ंड खत्म करके रानी अपने महल वापस चली गई।
सुखी लोहार की पत्नी हद दर्जे की लोयल थी। सो, वो वापस अपने पति के पास आ गई। पर अब वो बस काम करने के लिए करती। लोहार के लिए उसके मन में जो प्यार और सम्मान था वो जा चुका था।
सुखी लोहार की काम करने की आदत छूट गई। दोबारा औज़ार बनाने में अब उसे सालों लग जाएंगे. .. और लोग तब तक शायद उसे भूल जाएंगे!

Friday, February 10, 2023

नैहर

1.
हर साल की तरह आएगा 
एक और नया साल 
31 की रात 
जमकर पार्टी 
दोस्तों की जमघट 
टूटे प्याले 
जगजीत की गज़लें 
और 1 तारिख आते ही 
एक बार फिर वही अकेला, रुआँसा,
बिखरा हुआ घर 
पर शुक्र है... 
इस बार साथ है...
 नैहर


2. 
शादी...
शहनाई 
दुल्हन का जोड़ा 
दूल्हे की घोड़ी 
चाचा की पगड़ी
मंडप का सामान 
आए की नहीं सारे मेहमान....

पापा इन सब में बिज़ी थे...

और माँ?

माँ हाथ में लिए बैठी थी 
मेरे बचपन के खिलौने 
वो छोटी सी गुड़िया 
फूलों वाली स्वेटर
और 
झूठ मूठ की रसोई 

चुपके से माँ के कानों में 
मैंने कहा 
माँ क्या साथ नहीं चल सकते 
मेरे सारे खिलौने 
आप, पापा 
ये घर 
और 
मेरा सारा नैहर?

3
बाबुल मोरा नैहर छूटा जाये....

पर.. नैहर कहाँ छूटता है?
माँ की बनाई चादर,
तकिया, झालर...
ससुराल के सख्त बिस्तर को भी उसकी गोद जैसा मुलायम बना देता है...

माँ ने ये सब रख दिया था अटैची में चुपके से...

खीझकर कहा था मैंने
"आजकल ये सब कौन देता है माँ"

पर आज समझती हूँ कि क्यूँ माँयें
बेटियों के साथ भेज देती हैं 
थोड़ा सा नैहर...

Sunday, January 29, 2023

तुम तक

29 January 2023
7:26 PM

मैं अक्सर सोचती हूँ 
क्या मेरी कविताएं तुम तक पहुंच पाएँगी?
मैं जो सोचती हूँ, कहती हूँ, लिखती हूँ..
क्या तुम कभी समझ पाओगे, सुन पाओगे, पढ़ पाओगे?
मैं अक्सर सोचती हूँ...

क्या समझ पाओगे कि 
क्यों पिछली बातों का ज़िक्र करती हूँ 
आज के हर झगड़े में..