Sunday, May 10, 2015

Kabhi Meri Ghazale Bhi Padha Karo!

तुम खबरे पढ़ते पढ़ते मानो इन खबरों से ही बन गए हो।
कभी चहकते ही नहीं ...बस मायूस से हो गए हो।
उठते ही बलात्कार और खून की बाते करते हो..
रेल दुर्घटनाओ के बारे में पढ़ पढ़कर साईकल पे भी बैठने से डरते हो।
पिछले दिनों सलमान कांड से इतने प्रभावित हुए...
की फूटपाथ पर बैठे लोगो को हेलमेट गिफ्ट कर दिए।

राहुल बाबा के छुट्टी के बाद वाले भाषण सुनके खुदको कोसने लगते हो..
मोदी को वोट आखिर क्यों दे डाला दिन रात सोचने लगते हो।
इन सब से ऊब जाओ तो तीसरा पन्ना खोल लेते हो..
उनपर सितारों को चमकता देख..
खुदको भी घिसने लगते हो।

अखबार बहोत हुआ कहकर फिर t.v का रुख होता है..
बरखा दत्त , अर्णब की बेफुज़ूल की बहस सुना जाता है..
रजत शर्मा, राजदीप के सवालो से अपने ही दिमाग का दही करते हो।
रवीश की रिपोर्ट देख सच्चाई का दम भरते हो।

जानती हूँ तुम इन सब अखबारो और न्यूज़ चनेलो से अब थक गए हो
तुम खबरे पढ़ते पढ़ते मानो इन खबरों से ही बन गए हो।
कभी चहकते ही नहीं ...बस मायूस से हो गए हो।

कई बार सोचती हूँ तुमसे कहू...
सुनो! इन खबरों से यूँ मायूस न हुआ करो..
मायूस करने वाले इन खबरों की चंगुल से निकलकर...
कभी मेरी ग़ज़लें भी पढ़ा करो!!!
मेरी गज़ले तुम्हे जीने का सबब देंगी..
कुछ और करे न करे तुम्हे मायूस तो न करेंगी।
तुम उन्हें पढ़कर इक सुकून की सास लेना...
रोती हुई आँखों से इक बार फिर मुस्कुरा देना।

Friday, May 8, 2015

Kuch nazm aapki nazar.......

सुना है तमाम उम्र मेरी वफ़ा का हिसाब रखता रहा वो..
बेवफाई का रखता तो खाली कॉपी किसी और काम तो आती।

वो मिट गया...टुकड़ा टुकड़ा मेरी खातिर बिकते बिकते...
मैं अब तक सोचता हूँ इतने पैसो का उसने आखिर किया क्या होगा।

मेरी तारीफ में लिख दी थी उसने एक पूरी किताब...
हादसे के बाद पढ़ती हु तो झूठी लगती है सब।

वो मोहब्बत दिल में दबाये सालो मिलता रहा मुझसे...
जब मलबे में दबी लाश मिली उसकी...
तो बटवे में रखी तस्वीर से जाना मैंने।

रुक रुक कर चलता था तो गलफेहमि हो गयी...
मैंने उसकी मजबूरियों को मोहब्बत समझ लिया।

सुना है गरीबो को आजकल फुटपाथ पर नींद नहीं आती...
और नींद आ जाये तो फिर कभी आँख नहीं खुलती।

वो कुचलकर चला गया बस्तियाँ फिर भी...
लोग उसी की एक खरोच पर रोते रहे।

कहते है बस एक वचन निभाने को कोई 14 साल भटकता रहा...
अब सुना है किसीके भटकते कदमो को संभालने में 13 बरस बीत गए।


अंधेरो से अपनी इस कदर डरता है वो, की घर किसीका जलाकर भी रौशनी करता है वो।
अपनी सहूलियत से थी दोस्ती गहरी उसकी...
की कल किसीके लिए जीता था...आज किसी और पर मरता है वो।


वो दीवाली की रात थी
मैं समझता रहा मेरी याद में दिया जलाये बैठा है वो


तू पहले ही से इतना हसींन था
सजाकर मानो दुनिया से बैर मोल लिया मैंने

Wednesday, May 6, 2015

Salman fans के लिए कुछ ज्ञान....

शास्त्रो  का मुझे ज़्यादा ज्ञान नहीं है। न रामायण पढ़ी, न महाभारत... हाँ!  रामानंद सागर और बी.आर चोपड़ा जी की कृपा से इन दोनों ही ग्रंथो से जुडी कहानिया अच्छे से याद है। और इन कहानियो का निति रूप में विश्लेषण श्री राम किंकड जी महाराज  की ' नाम रामायण' पढ़ने से थोडा बहोत ज्ञात हुआ ।
रामायण के खलनायक, 'रावण' तथा महाभारत के खलनायक, 'दुर्योधन' में खलनायक होने के अलावा भी एक समानता और है। और वह ये की रावण के सीता हरण और दुर्योधन के द्रौपदी चीरहरण के दोष को छोड़ दे तो ये दोनों ही किसी महापुरुष से कम न थे। 
रावण एक शिवभक्त थे। लंका की प्रजा को उनसे कभी कोई शिकायत नहीं थी। शूर्पणखा से पूछने जाए तो पता चले की इस खलनायक जैसा तो और कोई भाई हो ही नहीं सकता। 
ऐसा ही कुछ दुर्योधन के साथ भी था। क्या कही किसी ग्रन्थ में ऐसा उल्लेख है की दूर्योधन के राज में प्रजा खुश नहीं थी? दुर्योधन भी श्री राम की ही भाँती एक पत्नी व्रत थे। अपने भाईयो के लिए तो वो लड़ मरने को तैयार थे। और उनकी मित्रता ने तो कर्ण जैसे सूत पुत्र को राजा बना डाला।
परंतु इन सब अच्छाईयो के बावजूद जो एक जघ्घ्न्य अपराध् इन दोनों ने किये उसके लिए स्वयं भगवान् को इनके प्राण लेने पड़े। यदि भगवान् ऐसा न करते और उनकी बाकी अच्छाईयो को देख उनके इस एक अपराध् को क्षमा कर देते तो शायद हम ये पाठ कभी न पढ़ पाते की बुराई पर अच्छाई की हमेशा जीत होती है।
हर व्यक्ति में कुछ न कुछ अच्छाई होती है। हो सकता है जिस व्यक्ति ने आपकी मेहनत की कमाई चुराई हो या आपके किसी सगे का खून किया हो वो निजी जीवन में एक बहोत अच्छा पति, भाई , बेटा या पिता हो। ये भी हो सकता है की वो एक समाज सुधारक हो या संत हो या खूब सारी fan following वाला कोई दिग्गज हो। पर इन सबकी वजह से उसका अपराध पूण्य में नहीं बदल जाता।
अच्छाई के लिए जिस तरह दिग्गजो को आम आदमी के मुक़ाबले ज़्यादा मान मिलता है, उसी तरह बुराई के लिए उन्हें आम आदमी के मुकाबले ज़्यादा कड़ी सजा भी होनी ज़रूरी है। कारण एक ही है .. सामाज इन्हें अपने आदर्श के तौर पर देखता है। और यदि आदर्श के आदर्शो में चूक हो तो समाज भी चूक सकता है।