Thursday, March 28, 2024

Now?

Facebook gives this old picture and a frame to create "Now".
What if, there isn't a "Now"?
What if?

Friday, March 22, 2024

Badminton

May be some day...
I will be able to play
Badminton..
Just like Piku!

But I don't know. 
Do I really want to play
Badminton?

Thursday, March 21, 2024

कुछ नहीं है यहां जीने को!

तुम..

जो भी यहां आने की दुआ मांग रहे हो 
सोच रहे हो कि बस एक जीवन मिल जाए 

कुछ नहीं है यहां जीने को 
हर रोज़ मरने को बहुत कुछ है 

काम करना होता है दिन रात 
जिंदा रहने को 

मन का भी नहीं होता वो काम 

तुम चाहोगे इंसान बनना 
पर पैसे कमाने की मशीन बन जाओगे 

तुम चाहोगे खुलकर जीना 
पर हर रोज़ थोड़ा थोड़ा 
घुट घुट कर मार दिए जाओगे!

Tuesday, March 19, 2024

झूठ

हम दोनों एक झूठ जी रहे हैं। 

झूठा सम्मान 
झूठा लाड 
झूठी फिक्र 
झूठी हंसी

झूठ-मूठ का रिश्ता।

जैसे नाटक हो कोई 
पात्र हों हम उसके 

शुरू-शुरू में अच्छा लगता था 
नया-नया था नाटक 

फिर रोज की बात हो गई। 
ऊब आने लगी। 
साँस फूलने लगती है अब। 

पर्दा गिरे और साँस लूँ। 

तुम पर्दा नहीं गिराते 
खेल जारी रखते हो

दर्शक जानते हैं सब झूठ है 
पात्र जानते हैं सब झूठ है 
पर टिकटें फिर भी बिकती हैं 

हर रोज़ वही शो 
साँस....

साँस...

दर्शक को लगता है 
ये भी झूठ है 

किसी को पता नहीं चलता 
हत्या हो गई। 

पर्दा नहीं गिरता 
तुम नाटक जारी रखते हो।

Saturday, March 16, 2024

I Don't go to shops anymore!

I don't go to shops anymore. I am afraid of the budget. What if I like something, ask the price and feel it is not worth. I am afraid of identified as a poor person. I am afraid of spending money. What if am not able to earn the same again?
All the respect is because of money. When they will know I don't earn anymore, it will be the same again.
I won't be offered any help in the kitchen because I wasn't doing anything the whole day. 
I won't be able to buy anything just because i want it, i need it. It will be bought only if the earner is convinced that i need it.
I like online shopping. I keep the things in cart. I keep seeing them. Don't buy them. I return them.

Friday, March 8, 2024

छूट गया...

कविताएँ लिखना 
अच्छा लगता था,
पर छूट गया..

स्टेज, परफॉर्मेंस,
ऑडियंस, तालियाँ,
मंच पर बोलना,
अच्छा लगता था,
पर छूट गया...

फिर...
कहानी लिखने लगी।  

लोगों से बातें करना,
उनकी बातों को 
शब्दों में पिरोना,
कहानी लिखना,
अच्छा लगने लगा,
पर छूट गया। 

फिर...
तरक्की मिल गई। 

लोगों की कमियां गिनाना, 
गलतियां निकालना,
कभी-कभी डांट भी देना,
अच्छा नहीं लगता था...
पर छूटा नहीं...

क्योंकि..
तरक्की के इन पैसों से
बिटिया की फरमाइशें पूरी करना,
माँ को साड़ी दिलाना,
बाबा का इलाज करवाना,
अच्छा लगता है।

इसलिए..
अपने मन का करना,
कविता लिखना,
मंच पर बोलना,
कहानी सुनना,
कहानी लिखना ...

सब छूट गया!

- मानबी