Thursday, December 24, 2020

Unpaused!

Amazon Prime पर जब मैंने Unpaused की पहली कहानी देखी, तो स्ट्रेस और बढ़ गया। पहली कहानी में Covid-30 आ चुका था और कुछ ठीक नहीं हुआ था। लोग सिर्फ work from home नहीं everything from home कर रहे थे।

मुझे लगा यही कहानी आगे बढ़ती रहेगी और Contagion की तरह अंत में सब ठीक हो जाता है वाले कॉन्सेप्ट को लेकर ये चू@#& इसमें 2-4 और लव स्टोरी घुसाकर 3000 साल तक सब ठीक होता हुआ दिखा ही देंगे।

लेकिन, आगे बढ़ी तो अगली कहानी शुरू हो चुकी थी। कहानी दो ऐसी औरतों की, जिनमें से एक ने ज़िन्दगी से बहुत कुछ सीखा था और एक अभी बस सीखने ही लगी थी। जीवन की ठोकरों से सीखा हुआ व्यक्ति ये समझता है कि ज़िंदगी में अहम से ज़्यादा ज़रूरी होता है रिश्ता। रिश्तों को कभी भी कितने भी बड़े अहम के लिए जाने नहीं देना चाहिए, ख़ास कर उन रिश्तों को जो आपकी कद्र करते हों।
सीख रहा व्यक्ति अक्सर कोई न कोई रिश्ता गवां कर ही इस बात को समझता है।
खैर इस वाली कहानी के मीम्स आपको मार्केट में भर भर के मिल जाएंगे।
एकाध हम भी जड़ देते है यहां!

तीसरी कहानी ठीक थी। पर बाकियों के आगे थोड़ी फीकी सी। मुद्दा तो सही था, पर ट्रीटमेंट उतना सही नहीं लगा। खैर, सब क्यों बताऊं? वैसे इस कहानी के बारे में बताने लायक ज़्यादा है नहीं! 

तो चलते हैं चौथी कहानी की ओर, जो इस सीरीज में मुझे दूसरी बेस्ट स्टोरी लगी। इसका अंत आपके रौंगटे खड़े कर देता है। क्योंकि आप जानते हैं कि आप भी इस वास्तविक अंत के दोषी हैं। कहानी एक मजदूर जोड़े की है, जो लॉक डाउन की वजह से बंबई में फंस गया है। अरे हां हां मुंबई है, पता है। पर मुंबई कहने से इसकी क्रूरता नहीं झलकती। बंबई से मानों स्वार्थ की बू आती है।

रहने का ठिकाना न होने पर ये जोड़ा अपने बेटे के साथ अपने साहब के घर रहने लगता है, जो विदेश में हैं। पैसे खत्म हो रहे हैं, राशन खत्म हो रहा है, काम मुश्किल से कभी मिलता है, कभी नहीं, घर जाने को कोई साधन नहीं। दूसरे मजदूर साथी पैदल निकल चुके हैं, पर इस उम्मीद से कि आज नहीं तो कल ट्रेनें चल पड़ेंगी, ये तीनों यहीं दिन गुजार रहे हैं। 
जीवन की तमाम निराशाओं के बीच इन दोनों के पास एक ही सुख है - जी नहीं चरम सुख नहीं - Tiktok!

पर एक दिन इसी tiktok पर बने वीडियो में दिख रहे घर को देख पकड़े जाते हैं और... 

उसी रात चल पड़ते हैं.. 

पैदल... 

....मुंबई से राजस्थान!

जिस साहब के घर में रह रहे थे, वो बड़ा सा मकान, खाली हो जाता है - बिलकुल फ्रेश!

आखिरी कहानी इस सीरीज की सबसे खूबसूरत कहानी है। किसी बच्चे सी मासूम कहानी। एक अविवाहित बुज़ुर्ग महिला और एक जवान, शादीशुदा, पर बंबई में अकेले रहने को मजबूर, ऑटो वाले की कहानी। पिछले कई महीनों से ओटीटी के सीरीज देख देख कर आपका दिमाग इस तरह प्रोग्राम तो हो ही चुका होगा कि आपको लग रहा होगा कि इन दोनों में प्यार हो जाता होगा। नहीं?
अजी हां आप सही सोच रहे हैं, दोनों में प्यार तो होता है, पर इंसानियत वाला प्यार, दोस्ती वाला प्यार!

हम रोज़ जीते हैं ऐसे प्यार को। प्यार, हमारी मां जैसी पड़ोस वाली आंटी के साथ। प्यार रोज़ घर पर काम करने आ रही मेड के साथ। प्यार अचानक रास्ते पर मिल जाने वाले अजनबियों के साथ। साफ सरल सीधा प्यार, जिसमें जिस्म का कोई रोल नहीं होता, सिर्फ मन का होता है। इस सीरीज ने उन्हीं प्यारे रिश्तों को परोसा है। कोई मिर्च मसाला नहीं, कोई ड्रामा नहीं और कोई 'सेक्स सीन' नहीं। आप अपने बच्चे के साथ आराम से बैठकर देख सकते हैं। उन्हें बता सकते हैं कि ऐसा होता है प्यार! 

मैं क्रेडिट्स नहीं देख पाई, क्योंकि पूरी सीरीज देखने के बाद मैं इसे देखने से मिले सुकून के नशे को खोना नहीं चाहती थी। 
पर आप सब, जिन्होंने भी इसे बनाया है, आपने ये साबित कर दिया कि सच्चाई और अच्छाई आज भी देखना पसंद करते हैं लोग। 

सलाम आप सबको! और थैंक यू! 2020 बुरा था ये कहते कहते हम इन छोटे छोटे प्यार भरे पलों को भुला ही चुके थे। इन्हें याद दिलाने के लिए थैंक यू!

Saturday, December 19, 2020

तुम्हारा लिखा हुआ

तुम्हारा लिखा हुआ पढ़ते पढ़ते कई बार अचानक लगता है, "अरे ये तो बिलकुल मेरे लिखे हुए जैसा है।"
मैं इसे तुमसे कहने की कल्पना करता हूं। पर ये सुनकर तुम कल्पना में भी मेरा मजाक उड़ाने वाली मुस्कान देकर ऑटोग्राफ देने लगते हो। पीछे से कुछ लड़कियां मुझे धकेल कर सरका देती हैं। और मैं कल्पना में भी तुमसे ये कहने की कल्पना करना छोड़ देता हूं।

हार

मैं एक हारा हुआ व्यक्ति हूं।

हारे हुए व्यक्ति को मंच पर नहीं बुलाया जाता।
उसे जीत का हार नहीं पहनाया जाता।
कितनी अजीब बात है न,
हार तो हार की होनी चाहिए।
फिर भी हार जीत के गले में होती है।

Thursday, December 17, 2020

छटपटाहट

अपने ही भीतर अपने आप को खो देने की छटपटाहट। 
इस ब्लैक होल से कभी न निकल पाने की घबराहट।
शून्य? क्या शून्य ही सत्य है?

Sunday, December 13, 2020

गुड्डू की मम्मी

क्या गुड्डू की मम्मी या मिसेज शर्मा की बजाय अपने नाम से पहली बार जाने जाने का रोमांच पुरुष कभी समझ पाएंगे?
अपनी पहली कमाई से अपने लिए एक लिपस्टिक खरीदने का सुख कभी मान पाएंगे?

उदासी

13 Dec 2020
आजकल मैं घंटों उदास रहती हूं। मैं जानती हूं उदासी के बारे में सोचना बंद कर दूं तो उदासी खत्म हो जाएगी। पर मैं उदासी के बारे में सोचना बंद नहीं करती। अपने दोस्त को बताती हूं कि मैं उदास हूं। वो मुझे दूसरों के ज़्यादा उदास होने के कारण गिनाने लगता है। मेरी उदासी को छोटा महसूस कराने लगता है। कहता है उदासी के बारे में सोचते बहुत हो। इसलिए उदास हो। उदासी के बारे में सोचना बंद कर दो। 
मैं उठकर चल देती हूं। और अपनी उदासी के बारे में सोचने लगती हूं। जो लोग मुझसे ज़्यादा उदास होंगे, क्या उनकी उदासी भी, उसके बारे में सोचना बंद कर देने से खत्म हो जाएगी?
क्या उदास व्यक्ति की सोच बंद की जा सकती है। क्या सोच के बंद होने से संसार उदासी मुक्त हो सकता है?

Saturday, December 12, 2020

इंसाफ

इंसाफ दिलाने से क्या मरा हुआ व्यक्ति वापस आ जाता है?
क्या लाशें बोलने लगती हैं?
फिर हम ज़िंदा लोगों को इंसाफ क्यों नहीं दिलाते?
बसों के टायर फटने का इंतजार क्यों करते हैं?
ऐक्सिडेंट के बाद उसे क्यों फूंकते हैं?
सब उजड़ जाने के बाद ही क्यों मुकदमा दर्ज होता है?
शोक के समाप्त हो जाने के बाद ही क्यों इंसाफ मिलता है?
क्या इंसाफ दिलाने से दोबारा कोई नहीं मरता?