Tuesday, November 19, 2024

कुबूल

जो बदल नहीं सका 
उसे कुबूल कर लिया 

मैंने अपनी इमारतों को 
यूँ धूल कर लिया 

ख़्वाहिश उसे पूरा का पूरा 
पाने की थी 
मैंने उसकी यादों को अपना रसूल कर लिया 

मर गया मैं 
तब जनाजे पर आए वो लोग 


जिनकी बातों ने मेरे कत्ल के लिए 
 खुद को शूल कर लिया 

अब हिरासत में हूँ तो सोचता रहता हूँ दिन रात 
जाने क्यों पकड़े जाने जितना मैंने भूल कर लिया 

आदत है उसको मुझे मनाने की 
ये मैं ही था जो रूठा रहा 
और खुद को दूर कर लिया 

एक चेहरे में कई किरदार छिपे हैं यहां ऐ दोस्त 
तू 

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