Saturday, May 26, 2018

घरेलू सहायक - चंपा

"भाभी मैं कल से 15 दिन नही आऊंगी...."
चंपा ने पोछा लगाते लगाते मुझसे कहा...

"अभी पिछले महीने भी तो छुट्टी ली थी चंपा....और 15 दिन...अरे बहोत दिक्कत होती है यार....रोकड़े पे 100 रुपये देने पड़ते है दिन के...."

"अरे पूरी बात तो सुन लो पहले..." चम्पा ने मेरी बेलगाम शिकायतों की फेहरिस्त को रोकते हुए कहा...

"मेरा घरवाला आएगा मेरे बदले 15 दिन...चलेगा?"

"ह्म्म्म...हाँ तो ऐसा बोल न... चलेगा चलेगा।"

"पर तू अकेले जा कहा रही हैं?"

"गांव...मेरी सास ने बुलाया है, फ़सल काटने को..."

"ओह्ह अच्छा! तुझे फ़सल काटना अच्छा लगता है क्या?"

"नहीं नहीं ...किसको अच्छा लगेगा ...सुबह से शाम तक धूप में ?"

"फ़िर ....तेरा घरवाला क्यों नही जाता फ़सल कांटने और तू यहां काम कर ले?"

"उसको नही आता ...."

"अरे ...उसी का तो खेत है न?"

" हां पर उसको नही आता..."

"अच्छा....ठीक है भेज देना उसे...."

चम्पा से मैंने ज़्यादा सवाल नही पूछे...पर न जाने कितने ही सवाल मेरे दिमाग में चलने लगे...

चम्पा ने बताया था कि वो बस तीसरी क्लास तक पढ़ी है। उसके पिता के बहोत कहने पर भी वो स्कूल नही जाती थी। उसे बकरियां चराना अच्छा लगता...तो वो सब सहेलियों के साथ बकरियां चराती। कह रही थी अब लगता है, पढ़ लेती तो अच्छा होता।

खैर, अमुमन बात यह है कि फ़सल तो शादी के पहले चम्पा ने भी कभी नही काटी थी। उसने ससुराल आकर यहां की इस ज़रूरत को सीखा होगा। पर उसके घरवाले ने नही सीखा....क्योंकि उसे वो काम अच्छा नही लगता था। क्या किसीने चम्पा से कभी पूछा होगा कि उसे क्या अच्छा नही लगता?

15 दिन के बाद चम्पा आयी....उसका रंग काफी गहरा हो चुका था। थोड़ी कमज़ोर भी लग रही थी। उसके घरवाले के रंग में कोई फर्क नही पड़ा।

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