Friday, October 23, 2020

पार्थ

24 अक्टूबर 2020
पार्थ... तुम्हें गए हुए 13 दिन बीत चुके हैं। तुम्हारे अधूरे छोड़े हुए कुछ आर्टिकल्स अब भी ड्राफ्ट में हैं। उन्हें यूंही ड्राफ्ट में पड़े रहने देती हूं। लगता है अभी फोन करूंगी तो कहोगे "जी मानबी"। ड्राफ्ट में पड़े आर्टिकल्स की शिकायत करूंगी तो कहोगे, "आप परेशान न हों, मैं अभी ठीक कर देता हूं।"

वीकली मीटिंग्स से ठीक पहले तुमसे पॉडकास्ट के नंबर्स पूछने की आदत अभी छूटी नहीं है। और कभी कभार ये भी सोचने लगती हूं, कि श्रीधर से अगली वीडियो मीटिंग में डिस्कस करूं कि तुम्हारी तीन तगड़ी खबरों में क्या अलग किया जाए कि उसके व्यूज़ बढ़ें।
गाना को अभी मेल नहीं किया कि अब पॉडकास्ट नहीं होगा। पता नहीं क्यों!

शशि का कल आखिरी दिन था ऑफिस में। उसके बदले जो आ रही है, उसकी हिंदी अच्छी है। Hopefully उसकी कॉपीज़ को ज़्यादा एडिटिंग की जरूरत नहीं होगी। तुम होते तो कहती कि "लो, एक ही शिकायत थी तुम्हें यहां के काम से, वो भी दूर हो गई, अब बोलो"।
इस पर शायद तुम ठहाका लगाकर हंसते। 

मेरे जन्मदिन पर जो वीडियो तुमने बनाया था, वह न मालूम कैसे डिलीट हो गया। अर्चना, निशा सबके वीडियो मिल गए, बस एक तुम्हारा गायब है। बहुत गूगल किया कि वॉट्सएप से डिलीट हुआ वीडियो वापस कैसे मिलेगा। पर नहीं हो पाया। अब अगले जन्मदिन पर भी तो नहीं भेजोगे कोई वीडियो। कभी कभी हम कुछ यादों को कितनी सहजता से मिटा देते हैं। यह सोचकर कि फिर बन जाएंगे, यादें ही तो हैं। पर कुछ यादें, आखिरी यादें होती हैं, काश इस बात का बोध हमेशा रहता।

तुम्हारी मृत्यु की खबर मिलने के बाद तुम्हारे परिवार वालों से बात करने की हिम्मत ही नहीं हुई थी। तुम्हें पता है, निशा अहमदाबाद में मेरी टीम की पहली और अकेली एम्पलॉइ थी। उसके काम के साथ साथ उसके निजी जीवन के ठीक ठाक होने की भी ज़िम्मेदारी मुझे अपने आप पर लगती थी। बिना बताए ट्रैवल करती तो मुझे बहुत गुस्सा आता। एक बार अर्चना के साथ बिना बताएं माउंट आबू चली गई ऑफिस वाले दिन ही। उनके वापस आने पर मैंने उन्हें खूब डांटा, कि ऑफिशली तो तुम दोनों यहीं थीं। रास्ते में कुछ हो जाता तो मैं क्या जवाब देती।
तुम्हारे जाने के बाद मानों उसी ज़िम्मेदारी का एहसास हो आया। लगा, तुम्हारे घरवालों को क्या जवाब दूंगी? 
ऑफिस वाले दिन तुम गए ही क्यों? मैंने तुम्हें जाने कैसे दिया?
क्यों नहीं कहा कि नहीं ट्रैवल कर सकते अभी, बहुत काम है ऑफिस का।
जब अदिति ने तुम्हारे पितु से बात करवाई तो मैं सिर्फ लगातार "सॉरी अंकल सॉरी अंकल" कह पाई। सांतवना का एक भी शब्द याद नहीं रहा।

आजकल तुम्हारी बहन अदिति से लगभग रोज़ बात होती है। हम दोनों तुम्हारी बातें करते नहीं थकते। मेरे पास तो बस ड्राफ्ट में पड़े वो चंद आर्टिकल्स हैं। सोचती हूं तुम्हारे घर में कितना कुछ पड़ा होगा तुम्हारा...


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