मैं हिंदी की खाता हूं...उसीसे ज़िंदा हूँ
ये और बात है कि इसी बात पर मैं शर्मिंदा हूँ
वो अंग्रेज़ी बोलता, कहता है उसीसे जीता है
उसीमे मुझको ज़ख्म देता, उसीसे सीता है
सजी है शायरी उसकी आला उर्दू में
मैं हिंदी के लहजे में एक लफ्ज़ भी कह लूं तो उसको चुभता है
वो बचपन से अपनी मादरी ज़ुबाँ का आदि है
उसे लगता है मेरी कोशिश उसकी भाषा की बर्बादी हैं
वो अफसर के घर पैदा हुआ मिली किताबे उसे
मेरे पिता मज़दूर थे कोई बता दे उसे
माना कि उसने सब कुछ पढ़ पढ़ के जाना है
मेरे अपने अनुभव हैं, सीखने का यहीं एक बहाना हैं
मैं उसे सुनकर उसका मुरीद बन बैठा
वो भी कभी सुनेगा मुझे इसकी उम्मीद कर बैठा।
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