Sunday, February 9, 2020

"यह मेरी कहानी है"

कितनी आसानी से तुम लेखक बन जाते हो,
कह देते हो कि "यह मेरी कहानी है।"

भूल जाते हो उस 'किसी' को जिसने बताया था तुम्हें वो किस्सा।

याद नहीं रहता तुम्हें वह 'कोई' जिसने खोजकर दिया था वहाँ तक का रास्ता।

'उसका' तो ज़िक्र भी नहीं आता जिसने सबसे पहले बनाया था इसका दस्तावेज़ और संजोकर परोस दिया था तुम्हारी रिसर्च-रूपी थाली में।

इन सबको दरकिनार कर तुम 'अपना' लेख लिखते हो...

त्रुटियों, अशुद्धियों, वर्तणी और लय की परवाह किये बगैर मन की सारी बाते एक कागज़ पर लिख देते हो...

और थमा देते हो 'उस' संपादक को, जो बिना किसी प्रतिफल की अपेक्षा किये 'तुम्हारे' इस लेख को त्रुटिहीन कहानी की शक्ल देता है।

'तुम्हारी' इस कहानी की लिखाई, छपाई और पाठकों तक पहुँचाने का ज़िम्मा भी 'जो' लेता है, उसे नहीं मिलती कोई वाह-वाह।

सबसे पहला पाठक जो इसे पढ़कर भूलता नहीं, दूसरों को भी पढ़ने की सलाह देता है 'उसे' तो शायद तुम जानते भी नहींं...

फिर एक दिन टीवी पर आ रहे किसी साक्षात्कार में तुम अपना परिचय देते हो...

"यह 'मेरी' कहानी है... 'मैं' इसका लेखक हूँ।"

No comments:

Post a Comment