Monday, December 30, 2019
चलो! एक बार फिर हिन्दू और मुसलमान बन जाते हैं।
Friday, October 18, 2019
कविता
Tuesday, October 1, 2019
Monday, September 30, 2019
Sunday, September 29, 2019
दो जगह।
हम जब जहाँ हैं, वहीं के क्यूँ नहीं होकर रहते
क्यूँ एक ही वक़्त में दो जगहों के होना चाहते हैं
सैलरी
न जाने कितनी कहानियाँ लिखनी थी बाकी,
न जाने कितनी तस्वीरें रह गयी अधूरी...
न जाने कौनसा गाँव बसने से रह गया,
न जाने कौनसी तमन्ना न हो सकी पूरी...
खैर छोड़ों... कल सैलरी आनी है!!
~ #मानबी
भीड़
हम चल पड़ते हैं..
भीड़ के साथ..
एक अक्षर भी नहीं पढ़ते इतिहास का
कुछ कदम चलकर देखते भी नहीं
सोचते नहीं... पूछते नहीं...
रुकते नहीं, जूझते नहीं...
हम बस चल पड़ते हैं...
भीड़ के साथ!
~ #मानबी
Tuesday, May 28, 2019
Sunday, April 7, 2019
सम्मानता
समानता लाना इतना असान तो नहीं
महिलाएं तो पुरुष बन गयी
मर्दो का औरत बन पाना असान तो नहीं
मैं नौकरी करके कमाने लगी हुँ
तुम बच्चा कब पालोगे?
मैं बाहर जाकर सब्ज़ी लाने लगी हुँ
तुम खाना कब बनाओगे?
गैस बुक करना, सीलंडर लगाना, ज़रुरत पड़ने पर बाइक चलाकर लड़की भगाना, हर चीज़ जो तुम करते थे मैं वो अब करने लगी हुँ
मुन्नू को नहलाना, स्कूल से लाना, ज़रुरत पड़े तो सास के पांव दबाना
हर वो चीज़ जो मैं करती हुँ, तुम कब कर पाओगे?
अब मैं भी ओकेशनल ड्रिंकर हुँ, स्मोकिंग ज़ोन में कश लगाती हुँ
सुहागरात पर ढूध का गिलास लिये बोलो तुम कब शरमाओगे?
समानता नहीं हम तुमसे केवल 'सम्मान'ता चाहती हैं
औरतें मर्द नहीं, तुम्हारी तरह केवल इंसान बनना चाहती हैं।