गर तू गैर की बाहों में छुपा नही होता
बहुत मुमकिन है कि मैं तुझसे खफा नही होता
तू बारह रूठकर मुझसे जुदा नही होता
गर सजदे में सिर मेरा तेरे आगे झुका नही होता।
अपनी पशेमानी को छुपाने की खातिर
मैं मस्जिद में बैठा रहता हूँ
मैं घर भी आ सकता था मगर
तू मुझको इक बार भी बुला नही लेता।
प्यार, मोहब्बत, ऐतबार...सब लौट आते सनम
जो तू इन सबको करने की मुझको सज़ा नही देता।
दिनों ईमान मेरा अब भी बरकरार है मेरे कातिल
कैसे कह दूं कि तू मुझको दगा नही देता।
- मानबी
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