Friday, July 3, 2015

Daadi ki Kahaani


मेरी दादी तभी गुज़र गयी जब मैं सिर्फ दस साल की थी। पर उनकी सुनाई कहानियाँ मुझे अब तक याद है। उनमे से एक किस्सा कुछ इस प्रकार था।
एक बार एक सामाजिक कार्यकर्त्ता एक नए मोहल्ले में रहने आई। उनके पड़ोस वाले घर और उनके घर के बीच एक बहोत ऊँची दिवार थी सो कई दिन गुज़र जाने के बाद भी वो अपने पड़ोसियों को कभी देख नहीं पायी थी। पर रोज़ सुबह जब वे चाय का कप और अखबार हाथ में लिए अपने बरामदे में बैठती तो पड़ोस से ज़ोर ज़ोर से गालियो की आवाज़ आती।
जिज्ञासा वश् समाजसेवी महिला ने दिवार पर कान लगाकर सुना तो समझ आया की रोज़ सुबह पड़ोस में रहने वाली बहु आँगन में झाड़ू लगाती है और वही बैठी उसकी सांस उसे गालियाँ देती रहती है। समाजसेवी महिला को ये सुन बड़ा क्रोध आया। पर उन्होंने सोचा की वे कुछ दिन तक और देखे की क्या होता है। पर ये तो रोज़ का किस्सा था। एक तरफ बहु के झाड़ू लगाने की आवाज़ और दूसरी तरफ सांस का ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना "बहु तेरे सत्यानाश हो....बहु तू नर्क में जाये...हाय मेरी फूटी किस्मत जो तुझे घर ले आई" ...वैगारह वैगारह।
समाज सेवी महिला से अब रहा न गया। उसने सोचा की ये बहु कितनी सभ्य और शालीन महिला है की सांस के इतनी गालिया देने पर भी बिलकुल चुपचाप झाड़ू लगाती रहती है। आखिरकार एक दिन समाजसेवी महिला एक सीढ़ी लेकर आई और उस पर चढ़कर दिवार के उस तरफ देखने लगी। पर जो उसने देखा उससे उसकी सिट्टी पिट्टी गुल हो गयी।पड़ोस वाली सांस अपाहिज थी और बरामदे में बैठे बैठे पापड़ बेल रही होती थी। बहु झाड़ू लगाते लगाते बीच बीच में उसे झाड़ू उठाकर मारने के इशारे करती तो कभी पापड़ पर धुल उड़ा देती। जब जब वो ऐसा करती सांस उसे गालियां देती।
इस कहानी से दादी ने हमें ये सीख दी की कभी किसीकी सुनी सुनाई बात पर विश्वास न करे। और बिना सच्चाई जाने किसी के बारे में कोई धारना भी न बनाये।
पर हमारे देश में अक्सर यही होता आया है। हम by default महिलाओ को अबला और भोला ही समझते है।हाल ही में खबर आई की अत्यंत सुसंस्कारी अलोक नाथ जी ने सामाजिक कार्यकर्त्ता कविता कृष्णन जी को 'bitch' कह डाला। और जैसा की हमारे देश के संस्कार है की यदि आप महिला है और किसी पुरुष ने आपको गाली दी तो आप बेझिझक शोर मचा सकती है, चिल्ला सकती है, उस पुरुष की (माफ़ कीजियेगा) माँ बहन कर सकती है। ओपन लेटर्स लिख सकती है। माफ़ी मंगवा सकती है। जी हाँ आपको भारतीय नारी होने की वजह से ये सारी सहूलियते मिली हुई है। आपके आंसू देखके आपकी कहानी छापने आये रिपोर्टर आपसे भूल के भी ये नहीं पूछेंगे की 'माताजी, बहनजी गाली देने जैसा क्या आपने कोई कार्य किया था?"।
पर यदि आप इसी महान देश के एक पुरुष नागरिक है तो आप चाहे प्रधान मंत्री जैसे आदरणीय पद पर भी हो तब भी आपको कोई भी महिला नागरिक "#LameDuckPM" अर्थात "एक नंबर का आलसी" कह सकती है। अरे तो क्या हुआ की कुर्सी संभालने के बाद से आपने एक भी छुट्टी नहीं ली। ना!! हमारे देश की महिलाओ को पूरा अधिकार है आपके लिए किसी भी तरह की भाषा का उपयोग करने का..समझे!!
अच्छा हाँ हमारे यहाँ की महिलाये आपको #SelfieobsessedPM भी बोल सकती है। इसमें बुरा मानने वाली कोई बात नहीं है। आपको सिर्फ इतना याद होना चाहिए की आपको महिलाओं की #respect करनी है। चाहे वो जूता धोकर आपको सरेआम मारे पर आप उनका आदर करते रहे।
ये सारा बवाल हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी के मन की बात से शुरू हुआ था। हरयाणा के बीबीपुर जिल्हे के पंचायत श्री सुनील जागलान की तारीफ करते हुए मोदी जी ने उनके चलाये #SelfieWithDaughter के अभियान को देशव्यापी सफलता देनी चाही। इस छोटे सरल और पवित्र अभियान को बेवजह Snoopgate से जोड़ना कहा तक सही था?
हम सब जानते है की गणेशोत्सव पहले सिर्फ घरो में मनाया जाता था।पर स्वराज पाने के लिए लोगो को एकत्रित करना ज़रूरी था और इसलिए माननीय लोकमान्य तिलक जी ने इस उत्सव को सार्वजानिक बनाया।एक देश को चलाने के लिए ...किसी मुहीम को चलने के लिए... उस देश की जनता का एकत्रित होना अनिवार्य है। उनमे उस मुहीम के प्रति जागरूकता तथा सकारकत्मक्ता का होना बेहद ज़रूरी है। #SelfieWithDaughter शायद वैसी ही एक कोशिश थी जिसे देश में ही नहीं विदेश में भी सराहा गया। परंतु कुछ लोगों की नकारात्मक सोच ने इसे एक भद्दा मज़ाक बना दिया।
कविता जी! श्रुति जी! मैं भी उन सब लोगो का पुरज़ोर विरोध करती हूँ जिन्हें मर्यादा में रहकर बात करना नहीं आता। पर मर्यादा किसी लिंग विशेष की ज़िम्मेदारी न मानी जाये तो अच्छा!
अंत में दादी की कहानी के अनुसार आप सब लोगो से विनती है की ये स्वयं तय करे की गाली देती सांस गलत थी या झाड़ू दिखाती बहु???
मानबी कटोच
Published on Mind The News (www.mindthenews.com)

http://www.mindthenews.com/reply-to-shruti-seths-open-letter/

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