Friday, May 8, 2015

Kuch nazm aapki nazar.......

सुना है तमाम उम्र मेरी वफ़ा का हिसाब रखता रहा वो..
बेवफाई का रखता तो खाली कॉपी किसी और काम तो आती।

वो मिट गया...टुकड़ा टुकड़ा मेरी खातिर बिकते बिकते...
मैं अब तक सोचता हूँ इतने पैसो का उसने आखिर किया क्या होगा।

मेरी तारीफ में लिख दी थी उसने एक पूरी किताब...
हादसे के बाद पढ़ती हु तो झूठी लगती है सब।

वो मोहब्बत दिल में दबाये सालो मिलता रहा मुझसे...
जब मलबे में दबी लाश मिली उसकी...
तो बटवे में रखी तस्वीर से जाना मैंने।

रुक रुक कर चलता था तो गलफेहमि हो गयी...
मैंने उसकी मजबूरियों को मोहब्बत समझ लिया।

सुना है गरीबो को आजकल फुटपाथ पर नींद नहीं आती...
और नींद आ जाये तो फिर कभी आँख नहीं खुलती।

वो कुचलकर चला गया बस्तियाँ फिर भी...
लोग उसी की एक खरोच पर रोते रहे।

कहते है बस एक वचन निभाने को कोई 14 साल भटकता रहा...
अब सुना है किसीके भटकते कदमो को संभालने में 13 बरस बीत गए।


अंधेरो से अपनी इस कदर डरता है वो, की घर किसीका जलाकर भी रौशनी करता है वो।
अपनी सहूलियत से थी दोस्ती गहरी उसकी...
की कल किसीके लिए जीता था...आज किसी और पर मरता है वो।


वो दीवाली की रात थी
मैं समझता रहा मेरी याद में दिया जलाये बैठा है वो


तू पहले ही से इतना हसींन था
सजाकर मानो दुनिया से बैर मोल लिया मैंने

2 comments:

  1. तनाव भरी चर्चाओं से बाहर आकर ऎसी रचनाएँ सुकून देती हैं. वही मुझे अभी-अभी मिला है.

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  2. बहोत बहोत शुक्रिया संजय जी !

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