Saturday, May 10, 2025

महाभारत

हित-वचन नहीं तूने माना, 
मैत्री का मूल्य न पहचाना, 
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ, 
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ। 

याचना नहीं, अब रण होगा, 
जीवन-जय या कि मरण होगा। 
फण शेषनाग का डोलेगा, 
विकराल काल मुँह खोलेगा। 

दुर्योधन! रण ऐसा होगा। 
फिर कभी नहीं जैसा होगा।

हित-वचन नहीं तूने माना, 
मैत्री का मूल्य न पहचाना, 

तू अज्ञानी है तुझे क्या समझाना,
मुझको अपने लोगों के हैं प्राण बचाना

रण होगा तो क्षणिक विजय होगी 
पर जनता सदियों तक झेलेगी 

मैं तुझको सबक सिखाने को 
क्यों कर मारू निर्दोष इंसानों को!