हम औरतों को
पुरुषों की बुद्धिमत्ता के
मापदंड पर तौलते हैं।
पुरुषों को कभी नहीं तौलते
औरतों के हुनर के मापदंड पर।
पुरुष जैसा अधिकार पाने के लिए
एक स्त्री को समझना होता है क्रिकेट और फुटबॉल
जाननी होती है राजनीति की बातें
समान्य ज्ञान पर चर्चा करनी होती है
और ड्राइविंग आना अनिवार्य हो जाता है।
पुरुषों को किसी भी अधिकार को पाने के लिए
खाना बनाना नहीं सीखना होता।
ससुराल पक्ष के ताने चुपचाप सुनने की
ट्रेनिंग भी नहीं करनी पड़ती
त्योहारों के नियम नहीं आने पर
संस्कारों की कमी का आभास नहीं होता।
नहीं करनी होती है उन्हें ऑफिस में घर की
और घर में ऑफिस की चिंता।
HR नहीं भांपते उनके गर्भवती होने का साल
Maternity न देना पड़ जाए इस डर से
नहीं जाती उनकी नौकरी।
खाना खाने के बाद सीधा सुबह ऑफिस जाने की चिंता में सो सकते हैं पुरुष
नहीं सोचना होता उन्हें कि झूठे बर्तन, बासी खाने का क्या करें।
कोई तुलना नहीं है
पुरुषों को सोचनी होती हैं सब बड़ी बड़ी बातें
घर का खर्च
बिटिया की पढ़ाई
परिवार की सुख सुविधा
माँ की बीमारी
सब बड़ी बातें
स्त्री छोटी-छोटी बातों में उलझी होती है
कल का नाश्ता, मेड का न आना,
सास की दवा
बिटिया का टिफिन
त्यौहार का व्यंजन
सब्जी लाना
और... घर चलाना
कोई तुलना नहीं है
बस पुरुषों की बड़ी बातों जितना
इन छोटी बातों का रुतबा नहीं है।
बड़ी बातों को रोज नहीं सोचना पड़ता
इसलिए समय मिलता है क्रिकेट देखने,
फुटबॉल सीखने और राजनीति समझने का
छोटी बातें रोज़ ले लेती है अधिकतर समय
फिर कैसे सीखे स्त्री वो सब जो पुरुषों के लिए
है बुद्धिमत्ता के मापदंड?
फिर भी
हम औरतों को
पुरुषों की बुद्धिमत्ता के
मापदंड पर तौलते हैं।
पुरुषों को कभी नहीं तौलते
औरतों के हुनर के मापदंड पर!