1.
हर साल की तरह आएगा एक और नया साल
31 की रात
जमकर पार्टी
दोस्तों की जमघट
टूटे प्याले
जगजीत की गज़लें
और 1 तारिख आते ही
एक बार फिर वही अकेला, रुआँसा,
बिखरा हुआ घर
पर शुक्र है...
इस बार साथ है...
नैहर
2.
शादी...
शहनाई
दुल्हन का जोड़ा
दूल्हे की घोड़ी
चाचा की पगड़ी
मंडप का सामान
आए की नहीं सारे मेहमान....
पापा इन सब में बिज़ी थे...
और माँ?
माँ हाथ में लिए बैठी थी
मेरे बचपन के खिलौने
वो छोटी सी गुड़िया
फूलों वाली स्वेटर
और
झूठ मूठ की रसोई
चुपके से माँ के कानों में
मैंने कहा
माँ क्या साथ नहीं चल सकते
मेरे सारे खिलौने
आप, पापा
ये घर
और
मेरा सारा नैहर?
3
बाबुल मोरा नैहर छूटा जाये....
पर.. नैहर कहाँ छूटता है?
माँ की बनाई चादर,
तकिया, झालर...
ससुराल के सख्त बिस्तर को भी उसकी गोद जैसा मुलायम बना देता है...
माँ ने ये सब रख दिया था अटैची में चुपके से...
खीझकर कहा था मैंने
"आजकल ये सब कौन देता है माँ"
पर आज समझती हूँ कि क्यूँ माँयें
बेटियों के साथ भेज देती हैं
थोड़ा सा नैहर...