फिर मैंने हाथ पकड़कर चलने की चाहत छुड़ा ली।
लेकिन बहुत सालों बाद... एक दिन अचानक उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर चलना शुरू किया। मुझे लगा थोड़ी देर में छोड़ देंगे। पर वो पूरे रास्ते पकड़े रहे।
इससे कुछ रोज़ पहले उन्होंने एक बड़ा दुःख दिया था। मैंने उसका ज़िक्र तक नहीं किया था। ये हाथ पकड़ना शायद उसी का इनाम था।
मुझे लगा ये अब शायद रहेगा... हमेशा... जैसा हमेशा से सोचा था।
पर दुःख हाथ पकड़ने के सुख से थोड़ा ज्यादा था। मैंने कह दिया कि दुःख है।
इनाम वापस ले लिया गया!
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