वह और जी भी लेता तो क्या करता... अंत में तो मर ही जाता।
उस स्टेज पे मरना कितना सुखदायी है, जब आपकी रात प्रेमिका से बातें करते-करते बीत जाती है और अगले दिन ऑफिस में नींद आती है।
उस स्टेज पर चले जाना कितना अच्छा है जब माँ नींद से नहीं जगाती है... ' सोने दो न ', कहकर बाबा को परे हटाती है।
पढ़ते-पढ़ते मर जाना जीवन के सभी संघर्षों से बच जाना है।
उस स्टेज पर मर जाना जब अब भी आप जी रहे हैं - अच्छा है।
जीते जी मर जाने के बाद मर जाना - प्रथा है।
काश मरने वालों को ये पता होता।
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