ये इंसान के छू लेने भर से फैलने वाली महामारी थी। पहले एक, फिर पाँच, फिर 100 और फिर लाखों लोग मरने लगें। ट्रेनें बंद कर दी गयीं। मज़दूर पैदल अपने घर जाने को मजबूर हो गया। रास्ता न भटके इसलिए ट्रेन की पटरी का सहारा लिया। रात थककर उसी ठंडी पटरी पर सो गया। उसे क्या मालूम था कि सिर्फ उसके जैसे मज़दूरों को घर पहुँचाने वाली ट्रेनें बंद हुई हैं, अमीरों की जरूरतें पूरी करने वाले माल को ले जाने वाली ट्रेनें नहीं!
लाशों के साथ अगले दिन के लिए बचाई हुई रोटियां भी पटरी पर मिलीं। लाशें कट चुकी थीं, रोटियां साबुत रहीं। कई दिनों की बनी होंगी, बेहद सख़्त थी शायद।
- मानबी
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