कई साल पहले एक पिक्चर देखी थी.... 'रुदाली ' . शायद कुछ अवार्ड्स वैगेरह भी मिले थे उसे। कहानी उस वक़्त की थी जब बड़े बड़े ज़मींदार घर के किसी बुजुर्ग के मर जाने पर किराये पर रुदाली(रोने वाले ) मंगवाते थे क्यूंकि स्वयं उन्हें उस बुजुर्ग के मरने का कोई दुःख नहीं होता था और ज़ाहिर है दुःख न होने के कारण रोना भी नहीं आता था। नायिका (डिंपल कपाड़िया ) के घर में पीढ़ियों से रुदाली बनकर पैसे कमाने का चलन था। नायिका की माँ (राखी ) तो जानी मानी रुदाली हुआ करती थी। पर नायिका की आँखों में चाहकर भी कभी आंसू नहीं आते थे। बड़ी बड़ी मुसीबते आई पर नायिका कभी नहीं रोई। पर अंत में अपना पेट पालने के लिए वो रुदाली बन जाती है.... फूट फूट कर रोती है।
ऐसा ही है भइ.... कई बार अपना पेट पालने के लिए रोना आये न आये.... रुदाली बनना पड़ता है। हाँ डिंपल कपाड़िया जैसी एक्टिंग की अपेक्षा आप हर किसीसे तो नहीं न कर सकते।
ऐसा ही है भइ.... कई बार अपना पेट पालने के लिए रोना आये न आये.... रुदाली बनना पड़ता है। हाँ डिंपल कपाड़िया जैसी एक्टिंग की अपेक्षा आप हर किसीसे तो नहीं न कर सकते।
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