Monday, April 20, 2015

Tum Chahti ho.....



तुम चाहती हो तुम्हे कम कपड़े पहनने की आज़ादी हो...
हम चाहती है हमारे पास बस तन ढांकने  जितनी खादी हो...

तुम चाहती हो, तुम वज़न बढ़ाना चाहो या घटाना, इस पर कोई ज़ोर ना हो...
हम चाहती है, अपने बच्चे को खाना ना दे सके, ऐसी कोई भोर ना हो..

तुम चाहती हो पूरी आज़ादी यौन संबंध रखने की..
हमे उम्मीद है किसी दिन अपना शरीर बेचे बगैर रोटी का स्वाद चखने की

तुम चाहती हो घर देर से आना बिना सवालो जवाब के..
हम जैसो के लिए घर जाना ही है ख़यालो ख्वाब से...

तुम आज़ाद हो...फिर भी चाहती हो आज़ादी को अपने रूप मे ढालना
हम क़ैद है... मुश्किल है इन दलालो के चंगुल से निकलना

तुम कुछ भी कह लो फिर भी लोग आरज़ू रखते है तुम्हारी..
हम कुछ नही कहती...फिर भी बाज़ारो मे आबरू बिकती है हमारी...

क्यूँ ना मैं और तुम मिलकर आज़ादी की एक नयी परिभाषा बनाए..
मर्द हो चाहे औरत...मर्यादा सबकी हो पर कोई किसी की इस मर्यादित आज़ादी को न ठेस पहुचाए। 


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