Friday, April 17, 2015

विजय माल्या के दुःख में शामिल होते हुए .....

दादा की एक पुरानी स्कूटर हुआ करती थी, बजाज की, हल्के पीले रंग की. दूर से ही पहचान लिए जाते थेे दादा उस स्कूटर की कृपा से।  जब कुछ ज़्यादा खटारी हो गयी तो  बेचने का विचार आया।  लोगों ने सुझाव दिया की किसी मेकॅनिक को बेच दे, जो उसके पुरज़ो को अलग अलग करके बेच देगा।  बाबा इस बात पे सहमत ना हुए और कही से स्कूटर को ठेलकर चलाने के लिए तय्यार एक ग्राहक ढूंड ही लाए. तब बाबा या दादा की स्कूटर के प्रति उस भावना को समझ  नही पाई थी।  पर कुछ वर्षो बाद मेरी 'बजाज सन्नी' का भी कुछ ऐसा ही हाल हुआ। गिरा गिराकर इंजिन  तक तोड़ डाला था मैने उसका।  बेचने की बारी आई तो वही बस एक मेकॅनिक और रद्दी वाले ही आगे आए खरीदने।  मेकॅनिकल इंजिनियरिंग की थी. 4000 रुपये की नौकरी थी. हॉस्टिल का किराया बकाया था।  घरवालो से मांगती तो घर वापस बुला ली जाती।  सो चढ़ा दी बलि अपने आज़ादी के एक मात्र वाहक बेचारे 'बजाज सन्नी' की ।  बहोत दुख हुआ।  बड़ा  ग़रीब ग़रीब सा फील हुआ।
 उस दिन मेरी सन्नी को रद्दी वाले को ना बेचती तो शायद बाकी दुनिया की तरह मैं भी विजय माल्या  का मज़ाक उड़ा रही होती . पर विजय माल्या  जी आज मुझे आपसे पूरी सहानुभूति है. बात चाहे ग़रीब के स्कूटर या सन्नी की हो या अमीर के हवाई जहाज़ की... रद्दी मे बेचनी पड़ जाये तो ग़रीब ग़रीब सा फील होता ही है. चिंता ना करे ..कुछ सालो बाद अब मैने होंडा एक्टिवा खरीद ली है. आशा करती हू आप भी एक बेहतर हवाई जहाज़ जल्द खरीद लेंगे.
शुभकामनाओ के साथ
आपके दुख मे शामिल,
मानबी

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