शास्त्रो का मुझे ज़्यादा ज्ञान नहीं है। न रामायण पढ़ी, न महाभारत... हाँ! रामानंद सागर और बी.आर चोपड़ा जी की कृपा से इन दोनों ही ग्रंथो से जुडी कहानिया अच्छे से याद है। और इन कहानियो का निति रूप में विश्लेषण श्री राम किंकड जी महाराज की ' नाम रामायण' पढ़ने से थोडा बहोत ज्ञात हुआ ।
रामायण के खलनायक, 'रावण' तथा महाभारत के खलनायक, 'दुर्योधन' में खलनायक होने के अलावा भी एक समानता और है। और वह ये की रावण के सीता हरण और दुर्योधन के द्रौपदी चीरहरण के दोष को छोड़ दे तो ये दोनों ही किसी महापुरुष से कम न थे।
रावण एक शिवभक्त थे। लंका की प्रजा को उनसे कभी कोई शिकायत नहीं थी। शूर्पणखा से पूछने जाए तो पता चले की इस खलनायक जैसा तो और कोई भाई हो ही नहीं सकता।
ऐसा ही कुछ दुर्योधन के साथ भी था। क्या कही किसी ग्रन्थ में ऐसा उल्लेख है की दूर्योधन के राज में प्रजा खुश नहीं थी? दुर्योधन भी श्री राम की ही भाँती एक पत्नी व्रत थे। अपने भाईयो के लिए तो वो लड़ मरने को तैयार थे। और उनकी मित्रता ने तो कर्ण जैसे सूत पुत्र को राजा बना डाला।
परंतु इन सब अच्छाईयो के बावजूद जो एक जघ्घ्न्य अपराध् इन दोनों ने किये उसके लिए स्वयं भगवान् को इनके प्राण लेने पड़े। यदि भगवान् ऐसा न करते और उनकी बाकी अच्छाईयो को देख उनके इस एक अपराध् को क्षमा कर देते तो शायद हम ये पाठ कभी न पढ़ पाते की बुराई पर अच्छाई की हमेशा जीत होती है।
हर व्यक्ति में कुछ न कुछ अच्छाई होती है। हो सकता है जिस व्यक्ति ने आपकी मेहनत की कमाई चुराई हो या आपके किसी सगे का खून किया हो वो निजी जीवन में एक बहोत अच्छा पति, भाई , बेटा या पिता हो। ये भी हो सकता है की वो एक समाज सुधारक हो या संत हो या खूब सारी fan following वाला कोई दिग्गज हो। पर इन सबकी वजह से उसका अपराध पूण्य में नहीं बदल जाता।
अच्छाई के लिए जिस तरह दिग्गजो को आम आदमी के मुक़ाबले ज़्यादा मान मिलता है, उसी तरह बुराई के लिए उन्हें आम आदमी के मुकाबले ज़्यादा कड़ी सजा भी होनी ज़रूरी है। कारण एक ही है .. सामाज इन्हें अपने आदर्श के तौर पर देखता है। और यदि आदर्श के आदर्शो में चूक हो तो समाज भी चूक सकता है।
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