मुझे लगा यही कहानी आगे बढ़ती रहेगी और Contagion की तरह अंत में सब ठीक हो जाता है वाले कॉन्सेप्ट को लेकर ये चू@#& इसमें 2-4 और लव स्टोरी घुसाकर 3000 साल तक सब ठीक होता हुआ दिखा ही देंगे।
लेकिन, आगे बढ़ी तो अगली कहानी शुरू हो चुकी थी। कहानी दो ऐसी औरतों की, जिनमें से एक ने ज़िन्दगी से बहुत कुछ सीखा था और एक अभी बस सीखने ही लगी थी। जीवन की ठोकरों से सीखा हुआ व्यक्ति ये समझता है कि ज़िंदगी में अहम से ज़्यादा ज़रूरी होता है रिश्ता। रिश्तों को कभी भी कितने भी बड़े अहम के लिए जाने नहीं देना चाहिए, ख़ास कर उन रिश्तों को जो आपकी कद्र करते हों।
सीख रहा व्यक्ति अक्सर कोई न कोई रिश्ता गवां कर ही इस बात को समझता है।
खैर इस वाली कहानी के मीम्स आपको मार्केट में भर भर के मिल जाएंगे।
एकाध हम भी जड़ देते है यहां!
तीसरी कहानी ठीक थी। पर बाकियों के आगे थोड़ी फीकी सी। मुद्दा तो सही था, पर ट्रीटमेंट उतना सही नहीं लगा। खैर, सब क्यों बताऊं? वैसे इस कहानी के बारे में बताने लायक ज़्यादा है नहीं!
तो चलते हैं चौथी कहानी की ओर, जो इस सीरीज में मुझे दूसरी बेस्ट स्टोरी लगी। इसका अंत आपके रौंगटे खड़े कर देता है। क्योंकि आप जानते हैं कि आप भी इस वास्तविक अंत के दोषी हैं। कहानी एक मजदूर जोड़े की है, जो लॉक डाउन की वजह से बंबई में फंस गया है। अरे हां हां मुंबई है, पता है। पर मुंबई कहने से इसकी क्रूरता नहीं झलकती। बंबई से मानों स्वार्थ की बू आती है।
रहने का ठिकाना न होने पर ये जोड़ा अपने बेटे के साथ अपने साहब के घर रहने लगता है, जो विदेश में हैं। पैसे खत्म हो रहे हैं, राशन खत्म हो रहा है, काम मुश्किल से कभी मिलता है, कभी नहीं, घर जाने को कोई साधन नहीं। दूसरे मजदूर साथी पैदल निकल चुके हैं, पर इस उम्मीद से कि आज नहीं तो कल ट्रेनें चल पड़ेंगी, ये तीनों यहीं दिन गुजार रहे हैं।
जीवन की तमाम निराशाओं के बीच इन दोनों के पास एक ही सुख है - जी नहीं चरम सुख नहीं - Tiktok!
पर एक दिन इसी tiktok पर बने वीडियो में दिख रहे घर को देख पकड़े जाते हैं और...
उसी रात चल पड़ते हैं..
पैदल...
....मुंबई से राजस्थान!
जिस साहब के घर में रह रहे थे, वो बड़ा सा मकान, खाली हो जाता है - बिलकुल फ्रेश!
आखिरी कहानी इस सीरीज की सबसे खूबसूरत कहानी है। किसी बच्चे सी मासूम कहानी। एक अविवाहित बुज़ुर्ग महिला और एक जवान, शादीशुदा, पर बंबई में अकेले रहने को मजबूर, ऑटो वाले की कहानी। पिछले कई महीनों से ओटीटी के सीरीज देख देख कर आपका दिमाग इस तरह प्रोग्राम तो हो ही चुका होगा कि आपको लग रहा होगा कि इन दोनों में प्यार हो जाता होगा। नहीं?
अजी हां आप सही सोच रहे हैं, दोनों में प्यार तो होता है, पर इंसानियत वाला प्यार, दोस्ती वाला प्यार!
हम रोज़ जीते हैं ऐसे प्यार को। प्यार, हमारी मां जैसी पड़ोस वाली आंटी के साथ। प्यार रोज़ घर पर काम करने आ रही मेड के साथ। प्यार अचानक रास्ते पर मिल जाने वाले अजनबियों के साथ। साफ सरल सीधा प्यार, जिसमें जिस्म का कोई रोल नहीं होता, सिर्फ मन का होता है। इस सीरीज ने उन्हीं प्यारे रिश्तों को परोसा है। कोई मिर्च मसाला नहीं, कोई ड्रामा नहीं और कोई 'सेक्स सीन' नहीं। आप अपने बच्चे के साथ आराम से बैठकर देख सकते हैं। उन्हें बता सकते हैं कि ऐसा होता है प्यार!
मैं क्रेडिट्स नहीं देख पाई, क्योंकि पूरी सीरीज देखने के बाद मैं इसे देखने से मिले सुकून के नशे को खोना नहीं चाहती थी।
पर आप सब, जिन्होंने भी इसे बनाया है, आपने ये साबित कर दिया कि सच्चाई और अच्छाई आज भी देखना पसंद करते हैं लोग।
सलाम आप सबको! और थैंक यू! 2020 बुरा था ये कहते कहते हम इन छोटे छोटे प्यार भरे पलों को भुला ही चुके थे। इन्हें याद दिलाने के लिए थैंक यू!
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