बहुत साल पहले लिखा था ये। ऐसा ही कुछ लिखती रहती थी। घर के आगे नीलगिरी का पेड़ था। उसके बारे में, चांद के बारे में, खदान भरने के लिए बनाए रेत के टीलों के बारे में, बहुत कुछ लिखती थी उन डायरियों में। बाबा हार साल ऑफिस से मिली एक डायरी देते थे। सबसे सुंदर वाली लपक लेती थी मैं।
उनमें वैसा वैसा ही कुछ लिखती थी, जैसा तुम लिखते हो।
फिर एक दिन मेरे मां बाबा मेरा भला चाहते थे, इसलिए उन्होंने वो सारी डायरियां जला दी।
No comments:
Post a Comment