कई बार सोचा, एक किताब लिखूं। कितनो ने सलाह भी दी, "आप किताब क्यों नहीं लिखती?" पर जब कभी ये ख्याल मन में आता तो बस एक ही कहानी नज़र आती- कहानी उन 6 महीनो की, वो 6 महीने जिन्होंने मुझे बिल्कुल बदल दिया। जिनकी वजह से आज 6 साल बाद भी मैं दुबारा पहले जैसी नहीं बन पाती।
अब कोई कुछ नहीं कहता पर वो बातें आज भी सुई की मानिंद चुभती है। अब ये काम में हाथ भी बटाते है पर वो राते अब भी याद आये तो सिहर सी उठती हूँ।
पर फिर रुक जाती हूँ। ज़ख्मो को बड़ी मुश्किल से एक परत सी लगाकर ढक सा रखा है। ये परत खोल दूंगी तो सारे ज़ख्म उसी तरह ताज़ा, लहूलुहान मिलेंगे।
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