क्या ऐसा नहीं हो सकता कि न तुम बदलो न मैं?
और फिर भी रहे हमारा प्रेम...अटूट, अडोल और अमर?
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि श्रावण में मैं मांस खाऊ,
और तुम उपवास करते रहो
हर एकादशी पर तुम चाहो तो पाठ करो
और मैं पार्लर जाऊं
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि तुम्हारी माँ सारे उलाहने तुम्हे दे
और मेरी माँ सारी खातिरदारी मुझे?
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मैं तुम्हे तुम्हारे तौर से जीने दूँ
और तुम मेरी जीवनशैली का मान करो
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि तुम ये कहना बंद करो
कि 'हमारे यहाँ ऐसा होता है'।
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मैं कहूँ कि 'मैं ये नहीं करना चाहती'।
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि न तुम बदलो न मैं..
और फिर भी रहे हमारा प्रेम...अटूट..अडोल और अमर?
No comments:
Post a Comment