मोहल्ले में लड्डू बंटे, जगराता रखा गया और फिर शुरू हुआ एहतियातों का सफर
वो जहां जाती बच्चे को शॉल, चादर सबमें लपेटकर ले जाती।
थोड़ा बड़ा हुआ तो उसे सिर्फ और सिर्फ देसी घी का पराठा खिलाती।
समय से खाना, वक़्त पर नहाना, खेलना कूदना और पढ़ाना
कभी अपनी आंखों से ओझल न होने दिया।
हर चीज में एहतियात, सतर्क रहकर बेटे को श्रेष्ठ बनाया।
अब बारी थी बेटे की
बूढ़ी मां को सतर्कता से संभालने की।
पर उसने अपनी बुद्धि से न जाने क्या क्या सामान बनाया
मां के घर में मशीनों का एक पूरा का पूरा संसार सजाया
धुंए से सांसे थम ही जाती तो अच्छा था,
पर अंत में बेटे ने ही उसके खाने में जहर मिलाया
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