फ्रिज का दरवाज़ा खोल
सोचने लगती हूँ कि लेना क्या था?
चीनी खत्म होने पर झट से स्लिपर डाले,
दुपट्टा लिए, बगल के पंसारी की दुकान में पहुंच जाती हूँ
और पूरी दुकान भर घूमकर, चिप्स, बिस्किट और यहाँ तक की आइसक्रीम तक ले आती हूँ
पर चीनी लाना फिर भूल जाती हूँ।
बिटिया को उठते ही उसके नाश्ते की फर्मायिश पूछती हूँ
वो कहती है "डोसा खाऊंगी मम्मी.."
और मैं गरमा-गरम पराठें सेंक लाती हूँ
बिजली का बिल, रसोई का सामान, मेड के पैसे, धोबी का हिसाब
हाँ सब हो गया ... सब हो गया
पर वो जो रोटी बनाते बनाते एक कविता सोची थी,
उसे आधा ही लिख पाती हूँ
आजकल मैं कई चीज़ें भूल जाती हूँ
पर फिर भी न जाने क्यों एक पुराना दर्द अब भी याद आता है,
लाख भूलना चाहूँ, वो ज़हन में घात लगाए रहता है।
आजकल मैं कई चीज़ें भूल जाती हूँ
बस यही एक चीज़ है जिसे चाहकर भी
मैं भूल नहीं पाती हूँ
आजकल मैं कई चीज़ें भूल जाती हूँ
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