समानता लाना इतना असान तो नहीं
महिलाएं तो पुरुष बन गयी
मर्दो का औरत बन पाना असान तो नहीं
मैं नौकरी करके कमाने लगी हुँ
तुम बच्चा कब पालोगे?
मैं बाहर जाकर सब्ज़ी लाने लगी हुँ
तुम खाना कब बनाओगे?
गैस बुक करना, सीलंडर लगाना, ज़रुरत पड़ने पर बाइक चलाकर लड़की भगाना, हर चीज़ जो तुम करते थे मैं वो अब करने लगी हुँ
मुन्नू को नहलाना, स्कूल से लाना, ज़रुरत पड़े तो सास के पांव दबाना
हर वो चीज़ जो मैं करती हुँ, तुम कब कर पाओगे?
अब मैं भी ओकेशनल ड्रिंकर हुँ, स्मोकिंग ज़ोन में कश लगाती हुँ
सुहागरात पर ढूध का गिलास लिये बोलो तुम कब शरमाओगे?
समानता नहीं हम तुमसे केवल 'सम्मान'ता चाहती हैं
औरतें मर्द नहीं, तुम्हारी तरह केवल इंसान बनना चाहती हैं।
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