तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ।
याद आया ये किसकी कविता है?
आप कहेंगे, "कविता?..ये तो मसान फिल्म का गाना है।"
पर क्या आप जानते है कि वरुण ग्रोवर के लिखे इस गाने की पहली दो लाइने जो आप सबसे ज़्यादा गुनगुनाते है वो कवि दुष्यन्त कुमार की ग़ज़ल से ली गयी है।
अभी हाल ही में 'हिंदी कविता' नामक लोकप्रिय यूट्यूब चैनल पर दुष्यन्त कुमार की पोती ने इस कविता को पढ़ा। पर पढ़ने से पहले ये नहीं कहा कि ये उस दुष्यन्त कुमार की कविता है जिसने ऐसी कई खूबसूरत कविताएं लिखी है। दुष्यन्त कुमार को हमसे मिलवाने के लिए उनकी पोती को मसान का सहारा लेना पड़ा। कहना पड़ा कि ये जो गाना आप लोगो को पसंद आया, ये दरअसल मेरे दादा की कविता है जिसे तब तक अपनी अलग पहचान नहीं मिली जब तक बॉलीवुड ने इसे अपनी एक फिल्म में जगह नहीं दे दी।
कैसी विडम्बना है न हम जैसे कवियों की ...हमारी कविताओं की। हम तब तक गुमनाम रहते है जब तक हम गुलज़ार या जावेद अख्तर नहीं बन जाते या फिर हमारे मरने के कई साल बाद कोई कवि ,कोई गीतकार हमारी कविता के कुछ अंश लेकर किसी फिल्म का गाना नहीं बना देता।
खैर! आज दुष्यन्त कुमार की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए... आईये सुनते है उनकी ये कविता, जो वास्तव में कुछ इस प्रकार है -
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ
हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ
एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ
कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ
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