कभी कभी जो ख्वाहिश आसमान में उड़ते हुए परिंदे को देखकर होती है, अक्सर दूर से किसी की ज़िन्दगी को देखकर वैसी ही एक ख्वाहिश होती है। कि काश मैं उसकी तरह ऊंचा उड़ पाता। कि... वाह क्या उड़ान है उसकी... क्या ज़िन्दगी है। न रोक न टोक... न ज़िम्मेदारियाँ .. न मजबूरियां... बस जहाँ दिल करे, जब दिल करे उड़ते रहो...
पर वही परिंदा शायद आपको देखकर सोचता हो... कि वाह! क्या लाइफ है बन्दे की... न खाने की तलाश में जगह जगह उड़ते रहने की टेंशन.. न घरोंदा बनाने के लिए तिनको की
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