तुम खबरे पढ़ते पढ़ते मानो इन खबरों से ही बन गए हो।
कभी चहकते ही नहीं ...बस मायूस से हो गए हो।
उठते ही बलात्कार और खून की बाते करते हो..
रेल दुर्घटनाओ के बारे में पढ़ पढ़कर साईकल पे भी बैठने से डरते हो।
पिछले दिनों सलमान कांड से इतने प्रभावित हुए...
की फूटपाथ पर बैठे लोगो को हेलमेट गिफ्ट कर दिए।
राहुल बाबा के छुट्टी के बाद वाले भाषण सुनके खुदको कोसने लगते हो..
मोदी को वोट आखिर क्यों दे डाला दिन रात सोचने लगते हो।
इन सब से ऊब जाओ तो तीसरा पन्ना खोल लेते हो..
उनपर सितारों को चमकता देख..
खुदको भी घिसने लगते हो।
अखबार बहोत हुआ कहकर फिर t.v का रुख होता है..
बरखा दत्त , अर्णब की बेफुज़ूल की बहस सुना जाता है..
रजत शर्मा, राजदीप के सवालो से अपने ही दिमाग का दही करते हो।
रवीश की रिपोर्ट देख सच्चाई का दम भरते हो।
रवीश की रिपोर्ट देख सच्चाई का दम भरते हो।
जानती हूँ तुम इन सब अखबारो और न्यूज़ चनेलो से अब थक गए हो
तुम खबरे पढ़ते पढ़ते मानो इन खबरों से ही बन गए हो।
कभी चहकते ही नहीं ...बस मायूस से हो गए हो।
कई बार सोचती हूँ तुमसे कहू...
सुनो! इन खबरों से यूँ मायूस न हुआ करो..
मायूस करने वाले इन खबरों की चंगुल से निकलकर...
कभी मेरी ग़ज़लें भी पढ़ा करो!!!
मेरी गज़ले तुम्हे जीने का सबब देंगी..
कुछ और करे न करे तुम्हे मायूस तो न करेंगी।
तुम उन्हें पढ़कर इक सुकून की सास लेना...
रोती हुई आँखों से इक बार फिर मुस्कुरा देना।
मेरी गज़ले तुम्हे जीने का सबब देंगी..
कुछ और करे न करे तुम्हे मायूस तो न करेंगी।
तुम उन्हें पढ़कर इक सुकून की सास लेना...
रोती हुई आँखों से इक बार फिर मुस्कुरा देना।
बहुत सुन्दर भावों को शब्दों में समेट कर रोचक शैली में प्रस्तुत करने का आपका ये अंदाज बहुत अच्छा लगा,
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी !
ReplyDeletem is ko facebook per post ker raha bhuhat acchi h
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteशुक्रिया अनीश जी। एक गुज़ारिश है की लिंक को पोस्ट करे ।
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