एक दिन चाय
की चुस्कियो के
साथ पड़ोस के
शर्मा जी एक
किस्सा सुना रहे
थे
सड़क पर पड़ी
किसी बदनसीब लड़की
की व्यथा बता
रहे थे…
हमने पूछा
क्या आपने उसे अस्पताल
पहुँचाया था?
शर्मा जी भड़के...
बोले.."आप होती
तो मदत करती?
पुलिसवालो के मामले
मे बिना वजह
पड़ती?"
हमने वही चुप्पी
साधी..... ..
चाय तो ख़त्म
हुई पर बात
रह गयी आधी.
खैर रात होते
होते हमने भी
सब भुला दिया।
ऐसे वारदात तो
यहा रोज़ रोज़
होते है...
वैसे भी सुबह
उठते ही सभी
को बड़े काम
होते है.
कुछ दिन यूही
बीते,… और शर्मा
जी ने यूही
कई किस्से सुनाए
चाय पीते पीते..
अचानक एक दिन
दिल्ली गैंग रेप
का किस्सा सुनने
मे आया…
और टीवी खोलते
ही हमे शर्मा
जी का चेहरा
नज़र आया.
शर्मा जी ज़ोर
ज़ोर से नारे
लगा रहे थे
…निर्भाया को कैसे
इंसाफ़ दिलाए ये बता
रहे थे
देखकर गर्व सा
हुआ की जिसे
शर्मा जी ने
ना देखा ना
सुना…बस एक
पहचान जाना ‘निर्भया’
उसके लिए उन्होने
ऐसा कठोर कदम
उठाया!!
पर फिर प्रश्न
के बादल घूमड़
कर आए की
सड़क पर पड़ी
उस लड़की ,जिसको
शर्मा जी ने
देखा था,
जिसकी कराह सुनकर
भी उनका दिल
नही दुखा था…उसका क्या
हुआ होगा??
वो
भी तो कोई
‘निर्भया ’ या 'दामिनी'
होगी,
हमारी ना हो,
आपकी ना हो
पर अपने अपनो
की तो वो
भी ‘अमानत’ रही
होगी…
फिर शर्मा जी क्यूँ क़ानून को
दोषी ठहरा रहे
है,क्यू अब
हादसे के बाद आँसू
बहा रहे है?
दामिनी को भी कई
शर्मा जी’ यो
ने देखा होगा
उनमे से कईयों ने अगले ही
पल उस मंज़र
को ज़हन से
निकाल फेका होगा!!
हम दूसरो पर उंगली
उठाते है......
पर
जब सामने कोई
हमारी बहनो को
छेड़ता है तो
उन उंगलियो को
जोड़, एक मुठ्ठी
क्यू नही बनाते
है??
ये प्रश्न आज है,
शायद कल ना
होगा…
यूही हम अन्याय के खिलाफ लड़ते रहे दोस्तो
तो..
फिर से मेरा
देश महान होगा..फिर से
मेरा देश महान
होगा!!!!
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