एक अलग ही मज़ा आ रहा था... अपना नया नया संसार बसाने का उत्साह...
और फिर .. ये हर महीने का काम बन गया...
शादी धीरे-धीरे एक काम बन जाती है। संसार बसाने में जो उत्साह होता है... वो संसार चलाने में खत्म हो जाता है।
कहीं भगवान के साथ भी तो ऐसा ही नहीं हुआ? इतनी सुंदर दुनिया बनाई, इतना सुंदर सजाया... पर अब शायद उसे चलाते चलाते ऊब गए हैं!
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