Sunday, September 7, 2025

जन्मदिन

7 सितंबर 2025
मेरा 43वां जन्मदिन!

लोग कहते थे- हम सब अकेले आए हैं और अकेले ही जाएंगे। 
मुझे भी ये बात ठीक लगती थी अब तक। 
आज पता नहीं क्यों अचानक ये एहसास हुआ कि जब हम आते हैं तो अकेले बिल्कुल नहीं होते। दो लोग होते हैं जो हर हाल में हमारे साथ होते हैं। हमारे लिए सब लुटा सकते हैं। अपनी जान तक दे सकते हैं। 
जाते हुए ऐसा कहाँ होता है?
जाते हुए भी किसी के लिए ऐसा कोई हो तो शायद कह सकते हैं कि न हम आते अकेले हैं और न जाते। 
पर जीवन बहुत बाकी रहते रहते ही आपको पता चल जाता है कि आप जाएंगे तो अकेले ही। 
किसी का भी साथ एक भ्रम है। 
और ये Realization आसान नहीं होता। 
किसी भी अच्छे भ्रम का टूटना आसान नहीं होता। 
मैं सुपर्णा दी को समझती हूँ, उनसे relate भी करती हूँ। बस अपने आप से या दुनिया को नहीं मालूम पड़ने देना चाहती यह बात।
दादा आनेवाले होते हैं तो वह खूब तैयारियां करती हैं। फिश, मीठा, उन्हें देने के लिए dry स्नैक्स।
मैं हर बार सोचती हूँ कुछ नहीं करूंगी पर करने लगती हूँ।
जितना देते हैं, उतना या उससे थोड़ा कम भी नहीं मिलता जब तब भ्रम टूटता है। 
पर जीते रहने के लिए हम थोड़ा भ्रम पाले रहते हैं। जानकर भी अनजाने चमत्कार की अपेक्षा लिए। 
कल किसी ने बहुत पकाया। मुझे लगता है मैं भी लोगों को बहुत पकाती हूँ। 
मुझे कम बोलना चाहिए, कम उम्मीदे रखनी चाहिए, कम भ्रम पालने चाहिए। मुझे जीने की कोशिश छोड़ देनी चाहिए अब। बस जिंदा रहना चाहिए!

No comments:

Post a Comment