उन्होंने उत्तर दिया था, "यही कि आदमी मरने के बाद कहां जाता है?"
मैंने उनसे पूछा था कि पता चल भी जायेगा तो क्या?
तब मुझे समझ में नहीं आता था कि यह इतना important question क्यों है।
शायद यह प्रश्न इतना जरूरी तब तक नहीं लगता, जब तक आप यहां से चले जाना नहीं चाहते। जब आप यहां से ऊब जाते हैं और दूसरी दुनिया में चले जाना चाहते हैं, तब आपको यह प्रश्न सताने लगता है। मरने से पहले मरने का डर नहीं लगता क्योंकि आप जीने से ज्यादा डर चुके होते हैं। पर अब इस बात का डर होता है कि अगर नहीं मर पाए तो बिखरे हुए टुकड़ों के साथ जीना कैसे जाती रखेंगे। और डर होता है कि मरकर भी दूसरी तरफ यही दुनिया मिली तो? यही रिश्ते, यही भूख, यही दौड़, यही ढकोसला मिला तो?
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