30 सितंबर 2020
12:39 am
कुछ वक़्त पहले तक मैं लिखना चाहती थी। कहानियां लिखने का भूत अब सर से उतर चुका है। लिख भी दूंगी तो क्या? लोग तारीफ़ कर देंगे। जानने लगेंगे। साबित कर दूंगी कि मुझे बहुत कुछ आता है। तो क्या?
आजकल सब बेमानी लगता है। कुछ भी मिल जाए तो क्या? बस यही एक सवाल करती हूं। फिर सपने बेमानी लगते हैं। दौलत बेमानी लगती है। शोहरत बेमानी लगती है।
आज किसीने चिंकी सिन्हा की एक कहानी शेयर की। लंबी चौड़ी कहानी थी। सफर का पूरा ब्योरा और सार था। कुछ दसवीं बारहवी में लिखी मेरी डायरी की तरह। पता नहीं कहां है वो डायरी। चिंकी की लिखी हुई ये कहानी भी तो किसी दिन गुम हो जाएगी। और न भी हुई तो क्या? आज से सौ साल बाद चिंकी सिन्हा की कहानियां कोई पढ़ता भी रहे तो क्या। और मेरी कोई कहानी कोई न भी पढ़े तो क्या?
हर काश की जगह अब तो क्या ने ले ली है।
No comments:
Post a Comment