मेरे कर्मक्षेत्र में लड़कियों का बोलबाला है।
पर कल इन्हीं में से 'एक' को
लड़का "देखने" आनेवाला है।
इन मोहतरमा की तो ऑफ़िस में इतनी चलती है
कि मर्दों की तो क्या औरतों की भी इनसे जलती है
पर जब इन्हें लड़के "देखने" आते हैं
तो बेझिझक कह कर जाते हैं,
कि देखिए हम अपनी घर की औरतों से नौकरी नहीं "कराते" हैं।
दूजी की कहानी भी इनसे मिलती है
इनकी बेबाकी के आगे तो दुनिया हाथ मलती है।
पर जैसे ही शाम ढलती है
"सड़क" पर ये सहम-सहम कर चलती हैं।
तिजी ने ऐसे-ऐसे लेख लिखे
कि अखबार हाथो-हाथ बिके
पर इसका श्रेय इनके पतिदेव लेते हैं
क्युंकि वो ही तो इन्हें
काम करने की "इजाज़त" देते हैं।
चौथी को किसीसे बैर नहीं
पर इनके आगे नेताओं की खैर नहीं
बस, सास जब बच्चे का ताना देती है
तो ये चुप कर के सब "सहती" हैं।
पंच कन्या की तो बात ही क्या है
पहेलियों में ये सबकी माँ है
पर जब बच्चों का "सवाल" आता है
तो इनसे भी नौकरी में टिका नहीं जाता है।
छटी कैमरा संभालती है
सनसनीखेज फोटो निकालती है
पर घर पर जब भी रोटी बेलती हैं
कोई न कोई नुक्स ज़रूर निकलती है।
सातवी, आठवी, नौवी या दसवी हैं
हम सब अलग सही, पर एक सी हैं
वरचुयालिटी की इस दुनिया में
अलग लेवल की फेक सी हैं
So do you know what is Reality?
It is 'घंटा Equality'!
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