मुझे कंप्यूटर की दुनियां बहुत पसंद है। तैश में आकर कुछ लिख दो। फिर सोचो नहीं नहीं शायद ये पढ़ने वालो को अच्छा न लगे तो undo का बटन दबा दो। सब लिखा हुआ सफा चट। पढ़ने वालो के बाप को भी पता नहीं लगेगा कि आपने क्या लिखा था।
लेकिन फिर अगर undo दबाते ही आपका ज़हन आपको कचोटे, आपको लगे कि अरे यही तो वो जगह है जहाँ आप सच्चे हो सकते है। जो मन करे लिख सकते। जैसी भाषा चाहे इस्तेमाल कर सकते है और अपने अंदर की भड़ास निकाल सकते है। आखिर इसी में तो आपकी ओरिजिनालिटी है। आपके लेखक होने का वजूद आपकी इसी सच्चाई पर तो टिका है। तो no worries.... झट से redo का बटन दबाएं और ये क्या आपके शब्द वापस....आपका असल चेहरा...आपकी सच्चाई वापस...'आप' वापस।
पर असल ज़िन्दगी में ऐसा नहीं होता। वक़्त आपको बदल देता है। लोग आपको बदल देते है। आप सब भूलकर redo का बटन दबाना चाहते है। पहले जैसे मस्तमौला, बिंदास, निष्पाप, मासूम बनना चाहते है पर नहीं बन पाते। न undo हो पाता है न redo।।
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