पिछले चार दिनों से हर न्यूज़ चैनल, हर अखबार और हर भारतीय एक ही चीज़ को लेकर परेशान है .....की "आखिर एक माँ कर्ण अपनी ही बेटी को क्यों मारा?"
चर्चा पे चर्चा, इंटरव्यूज पे इंटरव्यूज और एक एक नए खुलासे। मानो हमारे देश की उन्नति बस इसी एक केस के सुलझने पर निभर करती हो।
पर इस केस में ऐसा क्या है जो आप सभी को इसमें दिलचस्पी है?
नहीं! अब सारा दोष मीडिया पर न मढ़ दीजियेगा। आप!!...आप, जो इस देश के एक आम से नागरिक है, आपको भी इस केस में उतनी ही रूची है। तो जब अर्णब गोस्वामी इस बार ये कहे की 'द नेशन वांट्स टू नो' तो उसे झुटलाईयेगा नहीं। बेचारा इस बार बिलकुल ठीक बोल रहा है।
लेकिन आप सभी को क्या हैरान कर रहा है? क्यों इसी केस में दिलचस्पी है आपकी? ऐसे हज़ारो मर्डर केस देश में चल रहे है जिसकी पुलिस बेचारी बिना कोई जवाबदेही दिए शिनाख्त कर रही है। ऐसी कई माँये है जो अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए अपने ही बच्चे का खून कर देती है। फर्क सिर्फ इतना है की हर कोई इन्द्राणी मुख़र्जी की तरह हाई प्रोफाइल नहीं होती। और न ही वे अपने बच्चे के 24 बरस का होने का इंतज़ार करती है।
क्यों? यकीन नहीं होता? या हमेशा की तरह सच से मुह मोड़ लेना चाहते है?
देश के किसी भी अनाथालय में चले जाईये, वहाँ आपको 90% बच्चे अविवाहित माँ के ही मिलेंगे। कुछ को ये माँए खुद छोड़ जाती है और कुछ को इन्द्राणी जैसी माँए शीना की तरह मरने के लिए किसी कचरे के डिब्बे में फेंक देती है। जो बच जाते है वो अनाथ कहलाते है और जो नहीं बचते वो तो किसी गिनती में ही नहीं आते।
लेकिन हमारे समाज की विडम्बना देखिये। हमें शीना बोरा से सहानुभूति है, जो अब मर चुकी है। हम और हमारी बेहद सक्षम मीडिया दिन रात ये सोच रही है की कातिल कौन है। यदि शीना की माँ कातिल है तो क्यों है? और यदि पैसो या प्रतिष्ठा की खातिर ये सब हुआ तो कितनी शर्मनाक बात है ये किसी भी माँ के लिए।
पर यही मीडिया, यही हम, उन बच्चों से कोई सहानुभूति नहीं रखते जो ऐसी ही प्रतिष्ठा की बली चढ़कर रह गए। शायद इसलिए क्यों की उन बच्चों की माँ पीटर मुख़र्जी जैसी बड़ी हस्ती की पत्नी नहीं होती। या उनकी माँए इन्द्राणी मुख़र्जी की तरह किसी बड़ी मीडिया कंपनी की सी.इ.ओ नहीं होती।
कर्ण की व्यथा शायद इसीलिए महाभारत में दर्ज़ है क्योंकि वो महारानी कुंती का पुत्र था। वर्ना न जाने ऐसे कितने कर्ण रहे होंगे इतिहास में!
ये मर्डर मिस्ट्री तो हमारे आपके या मीडिया के दखल न देने पर भी जैसे सुलझनि है वैसे ही सुलझ जायेगी।पर जिन नवजात शिशुओ का क़त्ल उनकी माँ समाज के डर से कर देती है, उनकी स्थिति हमारे दखल देने पर ही सुधरेगी।
काश मीडिया उन मुद्दों पर दिन रात सोचती जिनसे समाज में कोई तबदीली आती न की उन मर्डर मिस्ट्रीस पर जिनसे समाज को कोई फर्क नहीं पड़ता।
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